बाल-दीक्षा और जैनागम | Bal Diksha Or Jainagam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
949 KB
कुल पष्ठ :
32
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बाल-दीक्षा और जैनागम १३
दीक्षा के विषय पर अत्यन्त प्रामाणिक है | शय्यभव भगधान महावीर के निर्वाण के
कोई ६८ वर्ष बाद देवलोक हुए---ऐसा अनुमान है। ऐसी हालत में “बाल-दीक्षा
भगवान के निर्वाणके बाद के १०० वर्षो में प्रचलित थी--ऐसा सिद्ध होता है।
(३) उत्तराध्ययन सूत्र जेन आगम साहित्य का प्रथम घूल सूत्र है । इसके १४ वे
इषुकार नामक अ्रभ्ययन में भगु नामक पुरोहित के दो पुत्र, भुगु और उसकी भार्या
यशा तथा ईषुकार नगरी के राजा ईषुकार और उनकी रानी कमलावती के प्रत्न-
লিল होने का वर्णन आया है। शभ्षगु पुरोहित के दोनों पु 4 को 'कुमार' शब्द से
सम्बोधित किया गया है। ये दोनो पुरोहित पुत्र अविवाहित अवस्था में ही नहीं
परन्तु बालक वय मे ही दीक्षित हुए थे, यह सब जेनी जानते है। टीका मे इनकी
कथा को बिस्ताग से देते हुए कहा कि पूर्व भव में देव रूप उत्पन्न हुण इन दोनों
भाइयों ने निश्न उ/ पु का रूप घारण पहले ही आकर अपने भावी पिता से कह
दिया शा {5 भविष्य मे उत्पन्न होने वाले उसके दोनों पुत्र बाल अवस्था में ही
दीक्षित होंगे! ।
(४ ) उक्तराध्ययन सूत्र के १५ वे अध्ययन की १२वी ए'था भी बाल-दीक्षा को
सिद्ध करती है। यह गाथा इस प्रकार है .-
“ज किचि आहारपाणगं विविह, खाइमसाइम परेंसि लख्थु ।
जो त तिविहेण नाणुकंपे, मणचयकायसुसंबुडे समिक्खू॥
इस गाथा मे प्रयुक्त 'नाणुकप' शब्द के अर्थ की पूर्ति टाकाकार इस प्रकार
करते हैर “नानुकम्पते को5थं: ग्लानबालादीन्नोप कुरुते! न ख भिश्लुरिति वाक्य
হান. ।'
इस गाथा का अर्थ इस प्रकार है --“यत्किश्वित् आहार, पानी तथा नाना
प्रकार के खादिम, स्वादिम पदाथ गृहस्थों से प्राप्त कर जो उस आहार से त्रिविध
योग द्वारा, सभोगी बाल, वृद्ध ओर ग्लानादि पर अनुकम्पा नहीं करता, वह भिश्च
नहीं किन्तु जिसने मन, वचन ओर काया को भलीमॉति सवृत किया है, वही
१- देखिये भावविजय गणि तथा वादिवताल श्री शान्ति सूरि कृत टीका यथा --
ताबूचतु. सुर्तों द्ौते, भाविनौ तौ च सन््मती, शिश्वुत्व एव प्रव्॒ज्या, विश्वप्जा ग्रह्ौप्पत ॥१८॥
भाव देवीया टीका ।
२-देखिये :--श्रौ उपाध्याय भात्मारामजी महाराज कृत अनुबाद पृ० ६५५, श्री बादिवेताल श्री
शान्ति सूरि कृत टीका तथा श्रो भाव विजय गणि कृत टीका ।
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