नाटक समयसार | Natak Samayasaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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= । पूृष्ठाक “उत्तम, मध्यम, अधम और अधमाधम जीवोंका स्वभाव २३१३ उत्तम पुरुषकां स्वभाव २३४ मन्यम + ` ॐ २३६ -अधम ॐ 39 २३७ -सथमाघम्‌,, =» २३८ मिथ्यारीकी अदुद्धिका वणेन २४० -गूढ्‌ मनुष्य विषये विरत महीं होते २४१ - अलतानी जीवकी मूदतापर खग অক জীব अभिका टत २४२ -अज्ञानी जीव वंधनसे न सुलक्ष सक्रनेपर दंत २४३ - अज्ञानी जीवकी अहूबुद्धि पर . दध॑त হা अह्तानीकी विपयासक्ततापर दर्घत २४५ जो निर्मोही है वह साधु हे... २४६ सम्यग्दी जीव आत्मस्वरूपमें * स्थिर होते हैं २४६ ` दिष्यका परद्न २४७ शिष्यकी शंकाफा समाधान २४८ जढ्‌ ओर चेतन्यकी एथकता २५० -आत्माकी शुद्ध परणाति २५० -शरीरफी अवस्था ` २५१ संसारी जीर्वोकी दश्चा कोल्टरके वैरुकै समान है सधय “संसारी जीवोंकी हालत ' ३७६ वयतुः] ` ४: ~ ८ ~, এ पाक 7 घन सम्पत्तिसे मोह हंटानेका - उपदेश र७५७ लौकिक जनोंसे मोह हटानेका उपदेश २५८ शरीरम तरिखोकके बिखस খাল ই २०८ जात्मविदास जाननेका उपदेश >५९ आत्मस्वरूपकी पहिचान ज्ञानसे होती है २६० मसकी च॑चर्ता २६१ मनकी चंचठतापर ज्ञानका प्रभाव २६२ मनकी स्थिरताका प्रयत्न २६३ आत्माुमव करनेका उपदेश २६४ आत्म-अदुभव करनेकी विधि २६५ आत्मानुसवसे कर्मबंध नहीं होता २६६ सेदज्ञानीकी क्रिया २६७ „+ का पराक्रम ९६८ আহহ अधिकारका ভান २६९ ५ मोक्ष द्वार प्रतिज्ञा २७० मंगलाचरण २७० सम्यगन्ञानतै आत्माी सिद्धि होती है २७१ सुबुद्धि विलास २७३ सम्यन््नानीका सहत्व दद




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