विपाक सूत्र | Vipaksutra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीचन्द सुराना 'सरस' - Shreechand Surana 'Saras'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्थानाद्धमेजो नाम आये हैं श्रीर वर्तमान मे जो नाम उपलब्ध है, उनमे
1 व्ध है, उनमे अन्तर रुण्ष्ट ই।
विपाकसूत्र मे श्रध्ययनो के कई नाम व्यक्तिपरक हैं तो कई नाम वस्तुपरक-यानी घटनापरक है।
स्थानाज़ू मे जो नाम आये है वे केवल व्यक्तिपरक है। दो अ्रध्ययनो मे क्रम-भेद है । কানা मे जो
आठवां अध्ययन है वह विपाक का सातवां अ्रध्ययन है भौर जो स्थानाड़ का सातवाँ श्रव्ययन है वह
विपाक का श्राठ्वाँ अ्रध्ययन है 1
स्थानाडुृ से दूसरे श्रव्ययन का नाम पूर्वभव के नाम के आधार पर “गोब्रास” रखा गया है
तो श्रस्तुत सूत्र मे श्रगले भव के नाम के श्राधार पर उज्मितक रखा है। स्थानाज़ु मे तीसरे भ्रध्ययन
का भड नामकरण पूर्वभव के व्यापार के श्राधार पर किया गया है तो विपाक मे अग्रिम भव के नाम
के आधार पर श्रभग्नसेन' रखा है । स्थानाज्भ मे नौवें श्रष्ययन का नाम सहस्नोद्दाह श्राभरक या
सहसोदाह है । सहस्रो व्यक्तियो को एक साथ जला देने के कारण उसका यह नाम दिया गया है
जबकि विपाक मे प्रस्तुत अव्ययन की मुख्य नायिका देवदत्ता होने के कारण श्रध्ययन का नाम देवदत्ता
रखा गया है। स्थानाज मे दसवे भ्रव्ययन का नाम 'कुमार लिच्छई' है। लिच्छवी कुमारो के श्राचार
पर यह नाम रखा गया है जवकि विपाक मे इसका नाम “अजू” है जो कथानतक की मुख्य नायिका
है । विज्ञो का यह मानना है कि लिच्छवी का सम्बन्ध लिच्छवी वश विशेष के साथ होना चाहिए ।
नन््दीसूत्र श्रौर स्थानाडुसूत्र मे विषाक के द्वितीय श्र् तस्कन्ध सुखविपाक के श्रध्ययनों के
नाम नही श्राये हैं । समवायाग में तो दोनो श्र् तस्कन्धो के श्रध्ययनों के नाम नही हैं। विपाक सूत्र मे
सुख विपाक के श्रव्ययनों के नाम इस प्रकार है--(१) सुवाहुकुमार, (२) भद्वनन्दी, (३) सुजात-
कुमार, (४) सुवासवकुमार, (५) जिनदासकुमार, (६) धनपति, (७) महाबलकुमार,
(८) भद्रनन्दीकुमार, (६) महाचन्द्रकुमार, (१०) श्रौर वरदत्तकुमार ।
समवायाग के पचपनवें समवाय मे उल्लेख है कि कातिकी श्रमावस्या की रात्रि मे चरम
तीर्थकर महावीर ने पचपन ऐसे श्रव्ययन, जिनमे पुण्यकर्मफल को प्रदर्शित किया गया है श्रौर पचपन
ऐसे श्रव्ययन जिनमे पापकर्मफल व्यक्त किया गया था, धर्मेबेशना के रूप में प्रदान कर निर्वाण को
प्राप्त किया । इससे प्रदत होता है कि पचपत श्रध्ययत वाले कल्याणफलविपाक और पचपन श्रष्ययन
वाले पापफलविपाक वाला श्रागम प्रस्तुत विषाक श्रागम ही है या यह आगम उससे भिन्न है ?
कितने ही चिन्तकों का यह मत है कि प्रस्तुत श्रागम वही श्रागम है, उस मे पचपन-पच्रपन
ग्रव्ययन ये, पर पतालीस-पेतालीस श्रव्ययन इसमे से विस्मृत हो गये है और केवल बीस श्रघ्ययन ही
গ্রনহীন रहे है । हमारी दृष्टि से चिन्तकों की यह मान्यता चिन्तन मागती है। यह स्पष्ट है कि
समवायाग में कल्याणफलविपाक और पापफलविपाक श्रध्ययनों के नाम नहीं है श्रोर वह जीवन को
सान्व्यवेला मे दिया गया श्रन्तिम उपदेश है। आ्रागम साहित्य मे जहाँ पर श्रमण और श्रमणियो के
प्रव्ययन का वर्णन है वहाँ पर द्वादशागी या ग्यारह अगो के श्रध्ययन का वर्णन है | यदि विपाक का
प्रस्पण भगवान् महावीर ने अन्तिम समय मे किया तो भगवान् के श्षिष्य किस विपाक का श्रष्ययन
१५ समणे भगव महावीरे प्रन्तिमराइयसि এআপল্ল श्रज्छयणाद कल्लाणफलविवागाइ पणपन्न अभ्ज्कयणाई
पावफलविवागाड वागरित्ता सिद्धे बुद्धे जाव पहीणे --समवायाग समवाय-५१५
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