अंतरंगिनी | Antarangini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नहीं अब मेरा पथ अनजान सागर से मिलती दै सरिता अपनापन सव खो कर जीवन भर को हो जाता तव दुख-खुख एक. समान चाहा था नव-स्वर्ग बसा इस तरणभंगुर भू पर समाधिस्थ हो गए झाज मेरे पिछले... अरमान रंग-बिरंगे पक्षी बन में गाते हैं. उड़-उड़ कर इनके स्वर में अपना स्वर भर गाती. हूँ. मैं गान मघुऋतु मे कोयल की वाणी सूनापन देती. भर। जाने किससे माँगा करता पागल मन वरदान ? पावस के घन काले-काले छा जाते हैं नभ पर ढू ढ रहे विद्युत में किसको मेरे. ब्याकुल... प्राण? श्र -..2दानघ दफा ना उपयुक्त लण्ड फल न एन लज ही ह प्राफम-फपताट क-. ८. नजरअंदाज




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