राजनीति विज्ञान में अनुसन्धान प्राविधि | Rajneeti Vigyan Me Anusandhan Pravidi

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Rajneeti Vigyan Me Anusandhan Pravidi by एम. एल. गुप्ता - M. L. Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4[राजनीति-विज्ञान में बनुसधात-प्रविधि व्यवस्था नहों है। इन देशों वे अधिव्राश सूचनादाता या उत्तरदाता (8657070৩715) अभिश्िन हेति &1 उनम पिखित उत्तर प्राप्त बरते का प्रश्न हो नहीं उठता) शिक्षित उत्तरदाताओ वा दुरिय्वोण प्राय असहयोगपूर्ण হেলা ই | शासक एवं प्रशाप्तर राजनीति गे शासन दी বে सुरला-मण्डार मानक उसमे जिसी পীঘলত ধা নাঈক্লাঁন নী पसंद मही वतते और उसे हर प्रकार से निरत्माहित बर देते हैं । “राजनीति का ज्ञान' शासकों क्म एवाधिवार बना रहता है । सह सब पुछ होते पर भी रॉजनीनिशाम्ध को वेज्ञानिकता एवं दिश्वसवीयता वो और से जाने के लिये यह आवश्यक दै कि इन सभो बाधाओं बा सामना किया जाय। इसके जलिय अपरितित त्याग और वलिदान वरना पढड़ेगा। प्रत्येव ध्यक्ति को एक नागरिक तया हविप्ठाबान राजवेला होते के नाते यह दामित्व पूरा बरता हो होगा । अन्यथा राजनीति बा अतीतवाल की तरह कतिपय मुट्ठी मर शासक अपनी निजी पूंजी मानते रहेंगे और सारे देश वो पतन वी ओर धबेलते रहगे । जब राजनीति सभी को तथा सभी क्षेत्रों से प्रभावित बरती है ता यह आवश्यव है वि उस विपय वो खुला और आम जतता वा विपय बनाया जाय तथा सभी वा उसकी निर्णयन-प्रत्रियाओ मे भाग लेने तथा योगदान वृणो का भवसर्‌ दिया जाय | पिछवे युगो में राजब्यवस्था क्षत्रियवगे तथा ब्राह्मणबय्य के हाथो में सौंप दी मषी थी। दसका परिणाम यह हुआ कि शेष विमान, सेश्ण, शुद्ध तथा अम्य निम्त वर्ग रादान्सदंदा के लिये दाम बन वर रह गये, और वे आज तक अपनी स्थिति से ऊपर नहीं उठ से । शासव>वर्ग अपनी एवाधिवारबादी स्थिति दे वारण भ्रष्ट और दुर्वंल हो गया जिसवा भार राजनीति सो वियुक्त वर्गों वो सहंगा पढ़ा | एक उत्तृष्ट सल्ृत्ति होते हुए भी देश पो थाने वाले मुट्ठीभर आव्रमणकारियों वे सम्मुख बार-बार बुरी तरह से पराजित होना बड़ा | इस आश्रपणवारियों के देश वो मौलिद एवं परम्परागत शस्ह्ृति को घूर-चूर बर दिया | उसने बाद नये विजयी झासत्रों ने पराजित देश पर अपनी व्यवस्था, सभ्यता भौर सस्कृति थोष दी । आम जनता ঈ पास च्यूनाधिक मात्रा मे, राजनीति एवं सस्यृत्ति से विशग बने रहते के वारण, नयी स्थिति को स्वीरार गरने वे अलावा और कोई उपाय शेप नही रहा । एन से बाद एव आत्रान्ता शारात इस प्रकार विविधताएँ उत्पन्न गरते रहे हैं। ये विजिधताएँ हो विभाजन, विघटन, विरोध आदि बा बारण बनती गयी । লিঙ্গে যত हैविः वर्तमान एवं भविष्य से राजदीति वा एक्रधियार णब तव॒ राजनेताओं और शासकों के पान बता रहेगा दया सामान्य जनता वो उससे दूर रखा जागेगा तब तब थे उसका अपने स्वार्यों व लिए उपयोग तथा आम जनता के हितो वो हाति वरते रहेंगे । इस एकापरिकार भाव वतन अतुभपान प्रजिधि विज्ञान तथा प्रदुढ्ध अनुमघानवर्साओं द्वारा हौ सोटा जा सकता है। यध्ववरि उत्ट भौ सषत होने के! लिये सौजसात्र के गन्द्म में, आम অললা ই संत्रिय समर्थन वी आवश्यकता पढ़ेंयी। विन्‍्तु यट गाये आम जनता वे समक्ष शजनीति ने হছে गो में शञातिग एव साउंजनिक ढंग में रसे 11 सम्भव नहीं है । नवीन दिशाएं (1६८७ िल्ताणछ) शंजनीति ने सहर्द को देखते हुए यह आवश्यर है रि राजशास्त्र को एव उपयुक्त अनुगाधा) प्रतिषि क द्वारा लवोने दशाएं-एव्रा, सृजतात्मबता, अनुभवपरवता, विश्वंगतीयाा कथा प्रीपिष्टा प्रदान बी जाद। दसबे लिए उसने अध्ययव-अध्यापन शो भधा सपा নৃষ্নালঘ ফী धारदीशरों में बाहर निशाना जाना चाहिए। उन्हे अपधोजन या प्रेण (कष्य) क माध्यम से आनुभविह बना दिया जाये । दमे निषे




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