राजभाषा के संदर्भ में हिन्दी-आंदोलन का इतिहास | Rajbhasha Ke Sandarbh Mein hindi andolan ka itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषा और राजभाषा 3 महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इस प्रसग में आचार्य भत्‌ हरि की निम्तलिखित उक्ति दषष्टव्य है सैपा ससारिणा सन्ना वद्िरतक््च वतते । तम्माना मनतिथान्त चैतन्य सर्वजस्तुपु ॥ वावय० 1-1261 (खन्द शक्ति ही समस्त प्राणियों मे चैतन्य रूप स वर्तमान है और इसवी सत्ता वाह्य एव आभ्यातर दोनो जगह हैं।) इस प्रकार भाषा यदि बाह्य जगत्‌ म लोक व्यवहार का साधन है, तो अतर्जगत म॑ वह सुखादि के ज्ञान स्वरूप प्रतिष्ठित है। यह स्वत सोचने व विचार करने का भी साधन है और विचार-विनिमय का भी । भाषा के द्वारा ही समस्त भावों एवं विचारा का विश्तेषण एवं उनकी अभिव्यक्ति की जाती है, प्रमास्येय और अस्षमारयेय सभी अ्थों का निरूपण क्या जाता है। इसी की सहायता से मनुप्य अपने सभी प्रुरुषार्थों (अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष) का उपाज॑न करता है। इसी के सूत्र मे ही वह अपने समस्त सबधो कै स्थापन एव सरक्षण तथा मानवीय गुणा के ग्रहण म॑ समर्थ होता है। ससार को एक सूत्र में बाधने की, परस्पर सहयोग की तथा विश्ववधुत्व की भावना जगाने की क्षमत्ता एकमात्र भाषा मे ही है।* यह मनुष्य की समस्त उपलब्धियो उसके विकास तथा उसकी सम्यता एवं सस्द्ृति की आधारब्षिला है, साथ ही समस्त उपलब्धियों में सर्वोत्हप्ट उपलब्धि भी है। सृष्टि म॑ यह अनुपमेय है और इसबा विकल्प अलभ्य है। भाषा भौर उसके लक्षण भाषा को आत्मा और बुद्धि से समत्वित मत तथा इन्द्रियो का व्यापार कहा गया है। सामान्य वस्तुआ की तुलना भ उसका स्वर कही अधिक सूक्ष्म है। इसलिए जापा वी परिभाषा देते समय अति व्याप्ति अथवा अव्याप्ति दोष से पूर्ण मुक्त होना कठित व असभव दोना के मितन विंदु का परिचायव' है। एक दोप स मुक्ति पान के लिए किया गया प्रयास दूसर दोप की सीमा मे प्रवेश कर जाता है। यदि विद्वाना वे द्वारा दी गई भाषा सवधी परिभाषाओं की समीक्षा की जय, तो उपयुक्त कथने कौ प्रामाणिकता मे कोद कोर-कसर नही रहेगी। इतना ही नही, कुछ विद्वावों ने तो भापा की एक व्यापर और एक भापा वैज्ञानिक दो-दो परिभाषाएं एक दो साथ है 7» इस व्यापक परिभाषा के अन्तर्गत वे विचार सपे क समस्त प्रणालियों (नैन्नग्नाह्म, श्रोज्ग्राह्म, स्पर्शग्राह्म या साकेतिक, वाचिक, लिखित एवं यात्रिक) का भाषा में ही समावेश कर जाते है। कुछ विद्वानों के अनुसार पशु-पक्षिया की घ्वनिया भी भाषा-सीमा में अपती हैं, तो बुछ लोग বল, झरना, फूल-पत्तिया, न जाने किस कसि की भाषा सुना




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