बच्चे गवाह नही हो सकते | Bache Gawah Nahi Ho Sakate

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Bache Gawah Nahi Ho Sakate by पंकज बिष्ट - Pankaj Bishta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आखिरी पहर 19 -मेड-बकरिथों के साथ, अपनी नहीं, उनकी जिन्दगी बचाने । पर यहाँ आदमी और ढेबरों की जिन्दगी में अंतर ही कहाँ था। उनकी जिन्दगी इन ढेबरों की जिन्दगी पर ही तो निर्मर थी। इसलिए उसे कोई भ्रम भी नहीं था कि वे जानवरों की जान बचाने का संघर्ष कर रहे हैं। यकायक उसने महसूस किया, आग ठंडी पड़ने लगी है। घूँआ तक नहीं रह गया था--गीली और कच्ची लकड़ियों का आँखों को चुभने वाला वह धूँआ, जो उन चंद एक लपटों की उम्मीद जिलाये रखता है जो जीने के उत्साह को बनाये रखने के लिए जरूरी होती हैं। उप्तकी समझ में नहीं आ रहा था कि करना क्या चाहिए। रोशनी के सिमटकर कुछ पचचिगारियों में बदलने के साथ बाघ के सर्वोपरि आतंक ने उसे फिर घेर लिया | अगर दोनों एक-साथ आ गये तो ? उसका रक्‍त-प्रवाह तेज हो 'उठा था और कनपटिटियाँ इस तरह आवाज करने लगीं मानो किसी बड़े सूखे पत्ते पर ठप-टप करती बूँदें एक निश्चित अंतराल पर पड़ रही हों। {उसने महसूस किया उसकी पीठ पाले-पड़ बफं-सी जम कर पत्थर हो गयी -है, जैसे वह अब तकर्पेवालीधारकी बर्फीली चोटीसे पीठसटाकरवैठा रहा हो । कल दिन-भर कुछ नहीं हुआ था, पर उससे पहले पीछा करता बाघ एक-एक करके सात जानवर मार चुका था। अजीब बात यह थी कि -संभवतः वाघ भी लगभग उन्हीं की तरह फेस गया था। यद्यपि वे ओर बाघ एक दूसरे के प्रतिद्वंदी थे, पर उन दोनों का त्राण अंततः मौसम पर ही टिका था । उसे खीझ उठने लगी, ददा पर। पर इस तरह से ददा को दोष देना भी गलत था । उस समय तो वह भी कहीं यह सोचकर प्रसन्‍त था कि सब साले डरपोक हैं। अब तक सारे के सारे अनुवाल सुरक्षित अपने-अपने जानवरों समेत पार जा चुके थे। सिफ वे ही फंसे रह गये थे और वह भी अपनी मूखंता में । जाते समय सबने उन्हें समझाया था#पर वे नहीं माने -ये 1 सम्भवतः अनुभव का भी अपना महत्वहै भौर हर काम सिर्फ हिम्मंत 'के ही वल पर नहीं किया जा सकता, यह उसकी समझ् में आ रहा थां। पर उनके टिके रहने के पीछे सिर्फ साहस या दिखावा ही नहीं था। तंब दोनों भाइयों ने सोचा था कि मौसम एकआध दिन से ज्यादा खराबें नंहों




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