हल | HAL

HAL by पंकज बिष्ट - Pankaj Bishtaपुस्तक समूह - Pustak Samuh

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पंकज बिष्ट - Pankaj Bishta

No Information available about पंकज बिष्ट - Pankaj Bishta

Add Infomation AboutPankaj Bishta

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
४ गए बिजूका पर कपड़ा झूलता है। ठंड लगी होगी और उसने छाती 9) | पकड़ ली। ऐसे में डबल निमोनिया न होता तो क्या होता! उसका मन | 9* «<9 | दुख से कुछ इस तरह बोझिल हो गया कि गाँव की चढ़ाई अंतहीन |णि | और असम्भव-सी लगने लगी। । घर पर पता चला भागुली को रोते-रोते गश आ गया है। घंटे भर | से होश नहीं है। पर घंटा काफी लम्बा साबित हुआ। अगले दो दिन न तक वह लगातार बेहोश रही। जब कभी जरा भी होश में आती शिबिय £ | 'ज्ञ्क्ष॥ को पुकारने लगती। भागुली की बेहोशी से घबराकर दूसरे दिन उसने “11 इगरसिंह को तार कर दिया था। शायद कल-परसों तक आ पहुँचे। | <>4| पर अब लगता है कि जैसे गलती हो गई हो। आज भागुली सुबह से पर ह »0| काफी ठीक थी और बीच में एक बार होश आने पर काफी देर ठीक-ठाक सा 227] >1॥ है अब। चिन्ता की कोई बात नहीं। बस सोने की दवा दे रहा हूँ, 0) «3५ तक बिल्कल चंगी हो जाएगी। पर |. बीच में जब भागुली की तंद्रा टूटी थी तो वह उसके पास जा बैठा | न हु था। धीरे-धीरे उसने ढाँढस बैंधाना शुरु किया, ““अब ऐसे कहीं चलता | (ई- (६ | है भला। बाल-बच्चों का मुँह देख। हिम्मत हारने से जिन्दगी नहीं। | > 46 | चलतीहै। ! मै स्वयं भागुली के ही न जाने कितने बच्चे मरे थे पर उसके इस तरह | “डत1। बेसुध हो जाने से ही शायद लोग कुछ हैरान थे रह-रह कर समझाते, 8 गए




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now