कसायपाहुड | Kasaya Pahudam

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कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री - Kailashchandra Siddhantshastri

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श्री फूलचंद्र - Shri Fulchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १० ) अनन्तानुजन्धी मान आदि तीनकी जघन्य स्थिति कौ मुख्यतासे सन्निकरषं जानना चादिए । अप्रत्थाख्यानावरण ` करोषकी जघन्य स्थितिवाकेके चार संज्वश्न ओर नौ नोकषायोकी नियमसे अनन्य असंल्यातगुणी स्थिति होती है । अप्रत्याख्यानावरण मान आदि तीन ओर मरत्याख्यानावरण चदुष्ककी नियमसे जघन्य स्थिति होती है। इसी प्रकार इन सात फषायोकी जघन्य स्थितिकी मुख्यतासे सन्निकषं जानना चादिए । ज्रीवेदको जघन्य स्थितिवालेके सात नोकधाय और तीन संज्वलनोंकी नियमसे अजघन्य संख्यातगुणी स्थिति होती है और लोमसंज्वलनकी अजघन्य असंख्यातगुणी स्थिति होती है । नपुंसकवेदकी जघन्य स्थितिवालेके इसी प्रकार सन्निकर्ष जानना चाहिए। पुरुषवेद्रकी लघन्य स्थितिवालेके तीन संज्वलर्नोकी अनयन्य संख्यात- गुणी स्थिति होतो है और लोभ संज्वलनकी अजघन्य असंख्यातगुणी स्थिति होती हे । हास्यको जधन्य स्थितिवालेके तीन संज्वलन और पुरुषबेदकी अजघन्य संख्यातगुणी स्थिति होती है और लोमसंज्वलनकी अजघन्यअसंख्यातगुणी स्थिति होती है । तथा पाँच नोकधायोंकी जघन्य स्थिति होती है । इसी प्रकार पाँच नोकषायोंकी जधन्य स्थितिकी मुख्यतासे सन्निक्ष जानना चाहिए । थे क्रोघसंज्वलनकी जघन्य स्थितिवालेके दो संज्वरनकी अजघन्य संख्यातगुणी ओर कोभसंञ्बलनकी अबधन्य असंख्यातगुणी स्थिति होती है । मानसं्चलनकी जघन्य स्थितिवालेके मायासंज्वलनकी अनघन्य संख्यातशुणी और लेमसंज्वलनकी अजघन्य असंख्यातगुणी स्थिति होती है । मायासंज्वलनकी जधन्य स्थिति- वालेके छोमसंज्वलनकी अजघन्य असंख्यातगुणी स्थिति होती है | छोमसंज्वलनको जघन्य स्थितिवालेके भन्य अङृतिमों नदीं होतीं । भाव--मूल और उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा सत्र औदबिक भाव है। अल्पवहुत्व--सामान्यसे मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिवाले जीव थोड़े हैं, क्‍योंकि उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध संशी पश्चेन्द्रिय पर्यात मिथ्याहृष्टि जोव करते हैं। इनसे अनुत्कृष्ट स्थितिवाले अनन्तगुणे है | कारण स्पष्ट है । जपन्यकी अपेक्षा मोहनीयकी जधन्य स्थितिवाले सभसे योदे हैं, क्योंकि क्षपक सूक्ष्मसाम्परायिक जीवके अन्तिम समयमें मोहनोयकी जघन्य स्थिति शेती है । इनसे अजघन्य स्थितिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। उत्तर प्रकृतियोंकी अपेक्षा यहां स्थिति अल्पबहुल्लका विचार किया है निसका शान अडाच्छेद्से हो सकता हे) इसलिएग़हांवद नहीं दिया नाता है । इस प्रकार कुछ तेईस अन॒ुयोगद्वारोंका आश्रय लेकर स्थितिविभक्तिका विचार करके आगे भुनगार, पदनिलेप, इद्धि और स्थितिसत्कर्मस्थान इन अधिकारोंका अवलम्न लेकर विचार करके 8स्थितिबिभक्ति समातत॒ होती है। इन अधिकारोंकी विशेष जानकारीके लिए, मूल्ग्रन्थका स्वाध्याय करना आवश्यक है ।




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