भूदान-यज्ञ | Bhoodan Yagya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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...सम्पादक की मोर से इमने दो अंकों में रुतया्र३ के प्रश्न पर मित्रों के विचार छापे हैं। अमी भी छोगो के दैल आ रहे हैं, हेड़िन इस हिरविले को फिल्दाड आये बढ़ाना एंभव नहीं है। इमारी कोशिश रहेगी कि भविष्य में ढिगी उपयुक्त अव्र, पर ए प्रशन फो फिर प्रस्तुत करें । छापर फो लेकर सुरतः दो पद सामने आये हैं। एक ओर कई मित्रों ने यह महयूत किया है कि प्रशासन के कुप्रचन्य, बाबर के शोषण और समान फी विपमता के कारण नेय হত और अन्याय का प्रतिकार द्ोना चाहिए। इस सदर में सायाग्रह का यह अर्थ समझा गया दै कि कोई उप्न, विरोधात्मरू कारसवाई की ज्ञानी चाहिए, ताकि घल्द-से-जल्द * मुक्ति मिले । दूसरी ओर कुछ मित्र यद सोचते हैं कि मामदान के रूप में एक गाप सत्याह चल रहा है, भले ही उसके स्ष्ट परिणम अमी न दिललायी देते हों। थो छोग प्रामदाम में ধয়ামহ देख रहे हैं उस्दें छत्पाप्रंश के नाम से चलनेवाली प्रचलित कारखाईर्यों में दुराप्रह दिलायी देता रे; कमी कमी उपद्रव के छिवाय दूसरा कुछ नहीं दिखायी देता । -. उप्र कारराई के समर्थक कहते हैं कि सर्वेखोकृत सत्य र्याग्रद के हिए आवश्यक दयो माना माय! अधिक होगों का समर्थन काफी शोना चाहिए। क्‍या अउमानता स्वास्थ साथ नहीं है। उसके निराकरण के लिए हम उत्पादन फे साधनों के समामीकरण को बात क्यों नहीं ढह सकते | आलिए, विनोजा के 'छ्पाप्रह! में ताक्तालिक समस्याओं को तुरत इल करने की बर प्रक्रिया है इसके विपरीत्त कुछ छोग रुत्याप्रइ के दुरुपयोग से सशक्त हैं, और उखे दूरं से अपनी बात मनवाने के कुचक के रूप में देखते हैं। उनकी दृष्टि में सत्याग्रह को वास्तविक হাজি विचार-परिवर्तन में है। दोनों बिचार एक-दूसरे ऐे बहुत अछग $ টান হতনা सब मानते हैं कि राजमैतिक दलों के दो विरोधात्मक कारयेरम चलते रहे हैं उनसे अपेक्षित परिणाम नहीं নিশ্চল है। और यह भी कि प्रामदान बुनियादी दौर पर कोई नयी बात कह रद्दा है, भठे ही वह बात किसीको सह्दी म लगे | खराग्य के घाद त््याप्रदों! की कमी मी रही है। इतना ही नहीं, सकारेंभी মহলী &) আহ লহীনা ই चेछ रहो हैं, लेडिन क्या জাহণা £ কি ভীনাঁ বা হে হুং হীরা नहीं दिखायी दे रद्दा है ! अपने इतने राजनैतिक देछ हैं, जिसमें से हर एक हमेशा किसी ন- दिखी प्रकार का प्रदर्शन या विरोध डी रचठा करता ही रहता है; लेकिन कुल मिलाकर रोममर्रा के शीषन के लिए कोई चीन हाथ ९ नहीं आ रही है, और घनता की मिराशा दिनों दिन बढ़ती जा रद्दी है। आलिर, कारण क्या है 1 शमजोरी कहां है ! आज बिन गोगोके द्वाथ में प्रशाउन है, क्या उनमें मे और बुद्धिमान लोग हैं शी नहीं ! क्या इतने वर्षों के अनुमव के बाद হল भव भी नहो मानेंगे कि मूल दोप ब्यवस्था में है, और उछको बदले निना कल्याय नद है! गाधीनी का सत्याग्रह अंग्रेजों के विरुद्ध नहीं थां, छांम्राग्यनादी दोंचे के विष्द था। अंग्रेबों को तो बढ मित्र मानतेये। ससय के बाद हमने पुराना टचा श्वम रवा, जिसका दुष्परिणाम दम यान तक” भोग रहे हैं! क्या इस दाँचे के रहते हुए इसारा कोई भी प्रश्न इ5 हो छकता है। कई बार सरकार का निकम्मापन इसमें खब्दा है। उसकी तिरंकुशता से हवे श्षोम होता है । एस थोम के परिणामखरूप पिछले चुनाद के बाद बड़े पैमाने प९ सरकार- परिवर्तन हुआ । हेड़िन श्या श्म मानते ह कि सरकार के बदलने ऐे काम बन लाया ! क्या रोज-रोब द्ोनेवायी राजनैतिक उल्ट-केर अपने में एक गम्मीर समस्या महीं है सरकार कोई भी पे, उपे सदौ राते प रखने के दिए गैर्सरवाये शक्ति चाहिए। यह काम इंट-पत्थर से नहीं होदा | बह गैर सरकारी शक्ति जनता के सइकार और संगठन की होती है। वह लोश्शकि आज कहां है! न लोक का सत्य है, और न लोक की शक्ति है। नो सत्य है, दल का है| इर इक का अपना अपना कय दै, भौर अग्रह क्र अपमा माना दंग ऐै। जज देश में धवराज्य के एक सत्य में वे एषम टी ने सना एत्य भण्‌ पर लिया तो छश से एक रहनेवादा देश दो हो गया। आज जत्र देश में घ्म, मापा, जाति, दल आदि के सत्य ही का दें तो एक का सप्रह दूसरे के आग्रह से दकरायेगा और निश्चित है कि यह टकराव देश के दुकड़े-टुपड़े कर देगा । देश में आज एक जपरदस्त गैर सरकारी शक्ति दिखायी देवी, अगर गांधीनी की सह मानकर कांग्रेस सत्ता से अडग रहती | हब समाज के पास सत्य और सम्जत, दोनों वी शक्ति होती। लेकिन भाग तो इमारी शक्ति जुद्स और भाषण, पथराव और घेराह में है लत्म हो रही है। उतते समाज या सरकार की शोषण और दमन वी ध्यवस्था पर बया अतर होता है! लोकतन्ब के স্কিন তার ग्रे पवरोध! के लिए गुंजाइश है; और रं अवसरों पर जरूरत मी है। बहू कार राज- वैति दर्ल या नागरिकों भी समितियों के द्वारा शे सकता है। छेढिन विरोधवाद को ऋात्तिकारी राजनीति मान लेंगे तो आज का अधूरा छयक्तन्त मी ध्मा से भाकण । ` व्यवस्थों के परिवतन के लिए दो काम अनिवार्य हैं : (१) घनता अपने श्टकार और संगठन द्वारा अपने रोजमर्स के ध्ीवन को क्रमशः सरकार के क्षय ते निकरे; (२) यूमि और ([सरे छाघनों हा खाम्रिव भूदान-यह ४ शुकरवाए, २० ष्र्‌, 26৩




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