जीवन के दाने | Jeewan Ke Dane

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jeewan Ke Dane by रांगेय राघव - Rangeya Raghav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रांगेय राघव - Rangeya Raghav

Add Infomation AboutRangeya Raghav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मजदूर फिर काटने लगे। अचानक एक दर्दनाक चीख । क्या हुआ डितजी ने पुकार कर पूछा । एक मजदूर शाख पर से नीचे टपक पड़ा। उसे साँप ने काट लिया था वह भर रहा था। मजदूर कूद कूद कर भागते छगे। पेडितजी ने चिल्लाकर कहा- कहां जा रहे हो ? आज इसकोी' एक एक जड उखाड़ कर फक दो वर्ना कल यह सारीवस्तीको चीरान बना देगा । डरो नहीं। ओर पेड़ से सुड़कर कहा-ओ বাছা तसे पक एक डाल में मौत का भीषण ज़हर है आज में तेरी बोटी बोटी काट डालूगा । लोगों ने मजदूरों को घेर लिया था। व कुछ नदी समझ पा रहे थे कोलाहल मचने लगा था। एकाएक पंडितजी ने सुना-देखा ! तरे पापका कल। दूसरों को खाने लगा द॑ । तूने धरम की जड़ पर बार किया है। पंडितजी चौँक उठे । उन्होंने कहा-मालिक ! इसमे दो खून किये है | खून इसने किये हे कि तेरे पाप ने, तरे परबील जनम के पाप मे! जमीदार साहब ने कहा | पडतजां न तड़प कर फहा-- शोर इसने हमारे घर की रोशनी बेद करदी है इसन' हमारे घर में अंधेरा कर दिया है, इसने अपने भयानक गड्डी से हमे खंडहर बनाने का इरादा किया है, इसने हमार बच्चों को डसा त ४ में आज़ इसे काटे बिना नहीं रहेगा। कहते हुए पंडित सालिगराम ने जर्मान पर पड़ी हुई कुल्हाड़ी को उठा लिया।। : 0 যায? न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now