प्रणय और परिग्रह | Pranay Aur Parigrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(३
अरुण अपने स्थान से उठकर उसके समीप जा खड़ा हुआ । और
दुखी-सा हो कर बोला : “तू मुझसे रूठ गई ना, साधना ! ”
साधना ने उत्तर नहीं दिया । प्रश्ण ने कहा : “तब तो मैं झ्राज ही
हूर लौट जाञंगा | श्रभी ॥'
साधना तब भी नहीं बोली । झरुण द्वार की ओर चल पड़ा । साधना
ने कनखियों से उसकी ओर देखा | और बह भ्रपना सारा संयर्म खो कर
खिलखिला उठी। अरुण स्तम्भित-सा खड़ा हो गया ।
साधना केश बाँधने के प्रयास में गर्दन को तिरछी करके उसकी श्रौर्
देख रही थी । उसके मुख पर अब भी मुस्कान फूटी पड़ रही थी | अरुण
ने पूछा : “क्या बात है ?
साधना आँखें नचा कर बोली : “शहर सें जाने वाले साहब की सवारी
देख रही हूँ ।''
प्रण चिद गया । बहु बोला : “तू नहीं मानेगी ? ”
साधना ने सिर हिलाकर कहा : मैंने तो कोई हठ की नहीं, महाशय ! “
मैं मार दूँगा, साधना !
“सो तो तुम्हारा काम है । तुम पुरुष जो ठहरे ।”
“और तू क्याहै 1
“प्रबला 1
अझण ने साधना के निकट जाकर उसका हाथ भटक दिया। साधना
को केशराशि उसके हाथों ये छूट कर खुल पड़ी । और साथ ही वह फिर
खिलखिला कर हँसने लगी । तब वह श्ररुण का हाथ पकड़ कर बोली :
“कितने दित्त की छुट्टी आए हो, अरुण !
ग्ररुण ने उत्तर दिया : “छुट्टियाँ तो एक महीने की हैं |!
“ग्रन्त तक यहीं ठहरोगे न ?”'
“सोचकर तो यही भ्राया था 1
“मब विचार बदल रहा है ?/
+ 19
“सो क्यूँ ?
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