पंकज और पानी | Pankaj Aur Pani

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Pankaj Aur Pani by यायावर - Yayawar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ रेणु बालिका है, सयानी हौवर सव समभ जाएगी | बावा नै मित्तिर महाशय फी बाड़ी पर जाकर जामाता के पव पकड़ लिए 1 बिंगड़ल बेटी की श्रोर से क्षमा माँग रहे थे बाबा । बावाने कहा.ः रेणु बच्ची है, मित्तिर महादाय ! पन्द्रह बरस की भी नहीं हुई है। कुछ दिन के लिए झाप धैर्य धारण कीजिए । सयानी होकर मेरी रेखु सब समझ जायेगी । भ्रापका घरं श्रवश्य वसाएगी मेरी रेणु । श्राप मन मला मत्त कर 1 कई दिन पीछे रेरा दीदी के घर से अपने घर लोट झ्ाई। श्रौर फिर सखी-सहेलियों से माँग-माँग कर नानी की कहानियाँ पढ़ने लगी । राजकुमार फिर राक्षस से युद्ध करने लगा । राजकुमारी को कारावास से मुक्त करने के लिए । एक बार फिर से वह मित्तिर महादय को भूलती जा रही थी । समित्तिर महाशय भले ही उसे न भूल पाए हों । हाँ, वे बीच-बीच में उस के घर को चक्कर लगा जाते थे । श्रौर उनके घ्राने का समाचार सुनते ही रेणु कमरे के किवाइ बन्द करके छुप जाती थी । अपने घर में भी श्रब रेशु के दिन ही कट रहे थे एक प्रकार से । बाबा नात-बात में उस पर बिगड़ बैठते थे । बड़े भैया भी । भाभियाँ ताने मारती थीं । कहती थीं : उपन्यास पढ़ने थे तो तुम मित्तिर महाद्यय की बाड़ी में क्यों नहीं रहीं ? यहाँ खाश्नोगी तो काम करना पड़ेगा ।” रेणु छुप-छुपकर रो लेती थी । किन्तु घर का काम उससे नहीं होता था । काम करना उसको श्राता ही नहीं था । किसी ने उससे कभी वुछ काम करवाया ही नहीं था इसके पूर्व । दो-चार बार वेह दीदी के पास गई। घर के लोगों सो ऊब कर। किन्तु दीदी ने उसको समभाते-समशकाते सुबद्ध से राँक कर दी । वहूं कहती रही : “पागल सतत बन, रेरु ! तेरे जैसा राजा-घर किस-किसको मिल जाता है री? दो दिन में जी लग जाएगा । और फिर हो जाएँगे लड़के-बाले । सारे संसार की सुध भूल जाएगी तु । अपना घर बसा बे, रेणु ! भित्तिर महाशय का क्‍या ठिकाना ? श्रचानक चल बसे तो सारा घन सूसरों का हो जाएगा ।” रेणु ने दीदी के पास जाना छोड़ दिया । वह मित्तिर सहाधाय का नाम




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