पृथिवी पुत्र | Prithivi - Putra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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^ प्थिवी सूक्त--एक अध्ययन ६ विधाता ने सबसे ऊचे पर्वत-शिखर को स्वयं उसके मुकुट के समीप रखना उचित समा । इतिहास साक्षी है कि इन पर्व॑तो पर चढ़ कर हमारी संस्कृति का यश हिमालय के उस पार के प्रदेशों में फेला । पर्वतो की सूस छानब॑ न भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता रही है, जिसका प्रमाण प्राचीन साहित्य में उपलब्ध होता है। वेज्ञानिक कहते हैं कि देवयुगो में पर्व॑त सागर के श्रतस्तल मे सोते ये । तृतीयक युग (दाप ए78) के आर न में लगभग चार करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय भूगोल में बड़ी चकनाचूर करने वाली घटनाएं घी | बढ़े- चड़े भू-भाग बिलट गए, पर्वतों की जगह समुद्र रौर समुद्रो की जगह पव॑त प्रकट हो गए | उसी समय हिमालय और केलाश भू-गर्भ से बाहर आए। उससे पूर्व हिमालय मे एक समुद्र या पाथोधि था, जिसे वैज्ञानिक 'टेथिस्‌? का नाम देते हैं। जो हिमालय इस अरणंव के नीचे छिपा था, उसे हम अपनी भाषा में पाथोधि हिमालय (>टेथिस्‌ हिमालय) कह सकते हैं। जबसे पाथोधि हिमालय का जन्म हुआ, तभीसे मारत का वर्तमान रूप या गरः स्थिर हुआ। पाथोधि हिमालय और केलाश के जन्म की कथा ओर चट्टानों के ऊपर नीचे जमे हुए परतों को खोलकर इन शेल-सम्राठा के दीर्घं आयुष्य और इतिहास का अध्ययन जिस प्रकार पश्चिमी विज्ञान मे हुआ है, उसी प्रकार इस शिलीभूत पुरातत्त्व के रहस्य का उद्घाटन हमारे देशवासियों को भी करना आवश्यक है । हिमालय के दुर्धषं गडरलों को चीर कर यमुना, जाहृ॒बी, भागीरथी, मदाकिनी और अलकनदा ने- केदारखड में, तथा सरयू- काली-कर्याली ने मानसखंड में करोड़ों वर्षों के परिश्रम से पव॑तों के दले हुए गंगलोटों को पीस-पीसकर महीन किया है। उन नदियों के विक्रम के वार्षिक ताने-बाने से यद हमारा विस्तृत समतल प्रदेश अस्तित्व में आया है | विक्रम- के द्वारा हो मातृभूमि के हृदय-स्थानीय मध्यदेश को पराक्रमशालिनी गगा ने जन्म दिया है। इसके लिए गगा को जितना भी पविन्न और मंगल्य कहा जाय कम है। ववि कहता है कि पत्थर और धूलि के पारस्परिक सम्रथन से यह भूमि संभृत हुई दै (भूमिः सधृता धृता, २६) । चित्र-विचित्र शालाश्ों-




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