पुष्प विज्ञान | Pushp Vighan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हनुमानप्रसाद शर्मा - Hanuman Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुष्प विशान ८६
दैवपुप्पोद्धवं॑ ठैर भश्चिृद्रातनाश्चनम् ।
दन्तवेटकफारिश्न गभिण्या वचमनाप्म् ॥--मरा० प°
लॉग का तेल--अमिदीपक तथा वात, दन्तपीढ़ा, कफ और
गर्भिणियों के वमन का नाशऊ है ।
कफ-विकार में--लेंग का फाढा पीना चाहिए ।
वातसेग में--लोंग को घिसकर अंजन करना चाहिए |
यह आधघा शी शी, मृच्छा, जुकाम आदि में भी लाभकारी है ।
शासरोग में--ठिकरे को आग में तपाकर लाल करके एक
किसी मिट्टी के पान्न में उसे रखकर उस तप्त टिकर पर सात लगि
रख दे] जव लग भुन जार्यै तव आधी छटाँक गुस्वि का रस
उसी में छोड़ दें । उसके घोंक जाने पर लोंग और वह रस एक
साथ घोटकर पीना चादिए । प्रतिदिन प्रात काल ।
दन्तरोग में->लोंग का तेल অথলা অন হই के फाद्दा से
लगाना चाहिए ।
अजीणशोे में-- लौंग का अष्टमाश काढा पीना चाहिए। इससे
अभ्रिमाथ और विपूचिका रोग में भी लाभ द्वोता है ।
कास-चास में-- लोंग, कालीमिचे, वहेड़ा का छिलका एक-
एक तोला, कत्या तीन तोले, ववृल के अन्तद्यौल के फाढे के साथ
पीसकर दीन-तीन माशे की गोली बनाकर प्रतिदिन दिन में तीन वार
मुख में रखकर चुसना चाहिए ।
खॉसी में-- लेंग, जायफ्ल और छोटी पीपर छ -छ' माशे,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...