खण्डहरों का वैभव | Khandaharon Ka Vaibhav

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Khandaharon Ka Vaibhav by मुनि कान्तिसागर - Muni Kantisagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ १४ ~ एक दख विद्यन्‌ ष्टुखनने धोदित किया या कि जेनोने गुफाएं नहीं वनाई इस दातका भी कठिनताले निराकरण हुआ | आजम अनेक जैन गुफाएं से उद्यर्गिरि---खंडरगिरि (उदड़ीरा), उदयगिरि (सेलसा, मध्य भारत), व्यवसाया ( मव्वप्रदेश--चरयुजा ,; ढंकगिरि (चैराप्ट्र--शुत्रु जबके पाठों, इलोग (हैदराबाद) एड्रोल (वादामी ताह्छुका), चाँदवड़ (नाठिक), ठित्तन्नवाउन्न (उदडुक्क्रोटी) आदिको ग्रद्िद्धि प्रात्त कर चुकी ह । अनेक वर्तमान लेखकोंकों जन-मूर्तिबोंके लक्षण, चिह्ठ और पिरे यथार्थ ज्ञान न होनेंके कारण श्रामझ मान्यताओंके उल्लेखका दोषी होगा पडता ई । लाहौरतत प्रदाशित, श्री मद्ठाचार्य लिखित जैन आ्राइकोनोग्राफीमें ऋषमनायका चित्र दो वार छापा है और वलका चिह दोते हुए मी मूर्तिको महावीर नूरति लिखा है। प्रयाग संग्रहालयके विवरणोमें पा्श्वके यक्ष- को गण॒प/त नावकर लिखा हैं छि जैनियोंमें गणेशकी यूजा होती हैं। त्रिपुरी (मव्यप्रदेश) में एक मूर्तिक परिकरमें दो युगल मूर्तियोंको देखकर एक विद्वानन लिखा है कि यह अशोककी उन्‍्तान संबमित्रा और मह्देल्दद्वी मूर्तियाँ हैं, जबर कि मूल मूर्ति नेमिनाथकीं है, जैसा शंख चिह॒ते लक्षित है। दास्तवर्मे परिकरकी मूर्तिवाँ अम्विका और गानव यक्ुका हैं | दूरी बात झिसकी ओर मेंने अत्तावताके आरम्ममें संकेत किया है, ह ई हमारे पुरादलों ओर कलाइृतियोंको दृदयहीन उपेच्ता | 'खण्डहरों- 'में लखकने विरेषकर मव्यग्रदेशके पुरातचोका ही वर्णन किया छिन्हें उठने अपने परेदल अम्रणमें ভবন ইজ है ) किन्तु इतने ठीमित मरदेशकी वालानें प्राय: पद्न-ययपर उसने इस चैभवःकी जो दुर्गति देखी, पदक इदयं विकल हो उठ्ता हैं। देखिये कितने मयानक हैं यह [4 রা 43 ५ >=, 3३ $ ह वनै - बद्‌ पनर द, (भनार = पवरपूर-वर्थाकि पाठ) महाय य्रवरतेन- क्म ब्रवा हुआ नो किती चमय मच्यप्रदेशकी राजवानी




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