समय ग्राम - सेवा की ओर | Samay Gram - Seva Ki Or
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सिंहावलोकन :१६
असय-आश्षस, तलरामपुर
¶ ६-५-०७
प्रिय আহা লন,
१५ साल बीत गये। सन् ?४२ के जेल-प्रवास से आम-सेवा की
आखिरी कहानी रुख भेजी थी । पिछले १५ सात्ये में देश और दुनिया
में इतने अधिक परिवर्तन हो गये कि ऐसा लगता है, मानो सैकड़ों वर्ष
बीत गये | देश आजाद हुआ । लोगो ने बडी धूमवाम से आजादी की
खुणियों मनायी । फिर छुछ दिन दसी खुनी मे मसत रहै । उसके बाद
लोग एक दूसरें की शिकायत करने लगे, जेंसे किसी हारी हुई टीम के
खिलाडी फ़िया करते हैं ।
देखते-देखते भारत के आसपास के देशो में भी आजादी की लहर
उठी | सारी एशिया मे नव-जीवन की नव-चेतना का सचार हुआ और
चारो तरफ राष्ट्रटनिर्माण की योजनाओ की धूमं मची ।
एजिया से वह धूम आज भी मची हुई है ।
नव चेतना एशिया के देंगी की आजाटी से पश्चिमी देशों
के लिए. भोपण का अवसर घटता चला गया | फल-
स्वरूप उनके जीवन-संघर्प की समस्या उठ खडी हुई | इससे इन देशो की
आपसी कशमकण बटी ) युद्ध तो समा हुआ, पर इस केमक्डाने
गान्ति खापित नही होने दी । युद्ध के दिनों मे जो राष्ट्र मित्र-राष्ट्र जे, थे ही
एक-दूसरे के साथ होड करने लगे | फिर भी सबको जान्ति की चाह थी )
यह इसलिए नही कि थे जान्तिवादी या जान्ति-प्रिय ह्यो गये थे, वल्कि
इसल्ए, कि युद्ध की समाप्ति इतिहास की एक विशिष्ट घटना से हुईं |
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