समय ग्राम - सेवा की ओर | Samay Gram - Seva Ki Or

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Samay Gram - Seva Ki Or by धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिंहावलोकन :१६ असय-आश्षस, तलरामपुर ¶ ६-५-०७ प्रिय আহা লন, १५ साल बीत गये। सन्‌ ?४२ के जेल-प्रवास से आम-सेवा की आखिरी कहानी रुख भेजी थी । पिछले १५ सात्ये में देश और दुनिया में इतने अधिक परिवर्तन हो गये कि ऐसा लगता है, मानो सैकड़ों वर्ष बीत गये | देश आजाद हुआ । लोगो ने बडी धूमवाम से आजादी की खुणियों मनायी । फिर छुछ दिन दसी खुनी मे मसत रहै । उसके बाद लोग एक दूसरें की शिकायत करने लगे, जेंसे किसी हारी हुई टीम के खिलाडी फ़िया करते हैं । देखते-देखते भारत के आसपास के देशो में भी आजादी की लहर उठी | सारी एशिया मे नव-जीवन की नव-चेतना का सचार हुआ और चारो तरफ राष्ट्रटनिर्माण की योजनाओ की धूमं मची । एजिया से वह धूम आज भी मची हुई है । नव चेतना एशिया के देंगी की आजाटी से पश्चिमी देशों के लिए. भोपण का अवसर घटता चला गया | फल- स्वरूप उनके जीवन-संघर्प की समस्या उठ खडी हुई | इससे इन देशो की आपसी कशमकण बटी ) युद्ध तो समा हुआ, पर इस केमक्डाने गान्ति खापित नही होने दी । युद्ध के दिनों मे जो राष्ट्र मित्र-राष्ट्र जे, थे ही एक-दूसरे के साथ होड करने लगे | फिर भी सबको जान्ति की चाह थी ) यह इसलिए नही कि थे जान्तिवादी या जान्ति-प्रिय ह्यो गये थे, वल्कि इसल्ए, कि युद्ध की समाप्ति इतिहास की एक विशिष्ट घटना से हुईं |




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