विज्ञान | Vigyan

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Vigyan by गोपालस्वरुप भार्गव - Gopalswaroop Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वैज्ञानि सके है। द ज्ञीवाु तत्व (70100195) ते हमारे यहां की खास सम्पत्ति हैं | भारतवर्ष चिरकालसे आत्मवादी है जबकि कितने ही योरोपीय चैज्ञा- निक अब भी उसकी सत्ताकें खीकार नहीं करते। वर्तमान वेशानिकोने प्रोटोप्नाज्मफे सात गुण बताये हैं।वे हैं आकंचन ओर संकुचनकी शक्ति ((णत्तण्लिाक) स्पर्शाचुभवता और प्रसारण (992510]1 ) स्वक्रियता (4১060008907 ) रहार হত खीर पश्पिकंकरण (1४९९०९०४०7 204. 83810711107) 01: 1000) मानसिक इच्छा द्वारा सार अहण और असारत्याग (00560১01190 | 11 86016600 एाते 8९०'८1४०४) श्वास ओर সহলাল (7,691)178000) ঘুলআঅঁনল (790:0900৮- - 802) 1 वास्तवमें ये आत्माके गुण हैं | ओर इस विषयका जे सृचक श्रोर सत्यमुलक षरंन श्रध्या- व्मज्ञानी भारतीय विद्वानोने किया है वह अनुपम है1 ब्रह्मसूत्र ( वेदति दशेन ) म इस विषयको चरेम सीमापर पहुंचा दिया गयादहै। इस दृष्टि से काई भी भारतीयोकी वैज्ञानिकताके! असंत्य नहीं उहरा सकता । ` विकाश. सिद्धान्तके श्राविष्कारक डारविन साहिब समझे जते है । पर मनुखंहितांके स्ट प्रकरण तथा वेदादि ` प्रन्थौमे सुष्िके करमशः विंकाशका अश्वान्त वर्णन किया गया है। उनमे ` विकाश सिंद्धान्तकी प्रायः सभी बाते आ जाती हैं| प्राचीन भारतवासी संसारक यावत पदार्थों- केविकाश होनेकी बातका भल्रीभांति समझते थे। `. “` तं और शक्तिकी अविनश्वरताका सिद्धांत लिकोके बहुत समयसे मालूम नहीं है। पर साहित्यके प्रत्येक पृष्पर लिखी हुई है। का और प्रकृतिकी अविनश्वरता माननेवालोमें आरयंगण ही सर्वे प्रथम हैं। इस विषयपर अधिक জনা বিক্। লগল্লান कृष्णका एक श्कोकाझू ` नेकगण कई कारणोसे अबतक नहीं कर | भागं ना सते निधते भावे न मावे विधघतेसवः 3. दही पर्याप्त है। भारतीय ही रसविज्ञानके आदि जाता हैं । 1 इन सब बातांका पढ़कर अनेक सजन यह तक उठा सकते हैं, कि हमने प्राचीन भारतकी वैज्ञानिक उन्नति सम्बन्धी उन्ही बातेोंका নাল किया है जो आज्ञकल्न यूरोपमें प्रचलित है। यदि वास्तवम यहांके लोग विज्ञानका भली< भांति समझते थे तो कुछ बाते ऐसी भी बतलाई जानी चाहियें जो आजकल यूरोपवालोका न मालूम हें । यह तक ठीक है, ओर प्राचीन भारत- में सेकड़ों हजारो वस्तुय तथा ज्ञान ऐसे थे जिन- का चिह्न भी यूरोपमें नहीं देखा जाता । पर हमारे साहित्यके नष्ट कर दिये जानेसे उनका ठीक पता: नहीं चलता । तो भी अनेक बातें नवीन बतलाई जा सकती हैं । हमारे देशमे पहिले चोंत्रठकलाओं 0 और चोदह॒विद्याओका पूर्ण प्रचार था। हजार लाखो मनुष्य इनके ज्ञाता थे। इनमेसे अनेक कलाये और विद्याय विज्ञानके उत्कृष्ट ज्ञान द्वारा . ही जानी जा सकती है । इन कलाश्रामेसे अधि. कांश युरोपमे नदीं पादे जाती । रसायनविच्ा ` द्वारा तांबे लोका साना बनानेकी बात श्राघुनिक . शिक्तित लोगों यद्यपि चंडखरानेकी गप समभी ` जातौ हे, पर इसका कारण यदी ই कि यूरोपीय ` वैज्ञानिकगण अभीतक इस कार्यमें सफलता प्राप्त नहीं कर सके हें । जिस दिन वे इस कलाकां श्रवि प्कार कर लेंगे (ओर कहते हैं कि वह. दिन दूर नहीं है) उस समय सब कहने लगेंगे कि प्राचीन _ भारत इस विद्यामे भी यूरोपसे अ्रधिक ज्ञानी था। इस देशके वेशानिकोने परम शक्तिशाली . अज्भुत वाण आविष्कृत किये थे, जिनका मुकाबिला वतमान समयका कोई हथियार नहों कर सकता। आयोका धनुवंद वह अजुपम विद्या है जिसका यूरोपमे कुछ भी चिह्न नहीं। इस विद्या द्वारा प्राचीन मारतवासो नाना प्रकारके असाध्यकर्म / #




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