मनोरंजक रसायन | Manoranjak Rasayan

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Manoranjak Rasayan by गोपाल स्वरुप भार्गव - Gopal Swaroop Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जमक और समऊूयी खाने ध्् है। इसरा सबूत यद भी हैं दि सभो प्रायिपोंके सूनों ( रूथिरम ) नमफझका अस्ः पाया जाता है। ठिल्यझ्ी छडफना भी पराय- समकके भममवसे ही होती हे । हार्वेजे, जिसने पहले पहल थद्द खाप्रित क्रिया था कि मलुब्यके शरीरमें सधिरफा' सचार हुआ करना है, कई जानयरोके दिल्लापर प्रयोग करते हुए, यह पाया कि यदि ऐसे किसी दिलको, जिसकी धडफन बन्द ही गई हो, शूकसे छू दिया जाय, तो उसकी धड़कन फिर ज्ञारी-हो जायगी। वादम मावुस हुआ कि यद्द प्रभार “उस नमकफ़ा हे जो शूफर्म मौजूद दे । पौरोके तस्तुश्म भसचार फरनेवाले.“रखोम॑ नमक पाया जाता दै श्रतएघ यह स्पष्ट दै कि मनुष्य, पशु, पत्ती, पीौढे, सभी जीवीफे लिए नमक कितना उपयोगी, अपरित्याज्य और श्रपरिहाय है । इतना ही नहीं, यरन्‌ हमारी सम्यताऊी नीव भी इसी ममकऊी बढ लत पड़ी | जबसे हजरत इन्सानने।( मशुप्यने ) फ्था गरोश्त खाना छोड़ा, गोश्त पझारर खाना सौखा या नवाताताा ( वनस्पति ) खाना सीखा, तमीसे उन्दें नमक्रती जहरत भी महसूस हुई । जो लोग समुक्षफे क्विनारे या सास पास भी या तालाबों फे पास रहते, थे, बह नमक वडीशासानीसे तैयार कर लेते थे'ओर फाममें ले झाते थे, पर बह ब्रिचारे जो ऐसी जगटटों से,दृए रहते थे, उन्हे नमक दृस्तय्यव सदहोंता था। इस लिए उन्हें नमक खाने के लिंएएरयाना करनी पढ़ती था, जिखसे ऊफ्लि अझतर््ावीय (्‌ उआल्शायाएा ॥ ) वापिज्य्ी नीय पड़ी और ससारझी समस्त पतिहासिर धर्वाएँबादर्मे हुई । जो जञातियांँ कि फेचल साग पात ही साकर जीयन निर्याहः फण्तो है, उनकी सदा ऐसी दी-चेश्ा रद्दी है कि लझ भिडुरझुण




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