संस्कृत नाटकों का भौगोलिक परिवेश | Sanskrita Natakon Ka Bhaugolika Pariwesh

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Sanskrita Natakon Ka Bhaugolika Pariwesh by कृष्ण कुमार - Krishn Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1] संस्कृत नाटकों था भौगोलिक परिवेश प्राचीन सस्कृत साहित्य के भ्राधार पर प्राचीन भारत के भूगोल को प्रस्तुत वरमे के' अनेक प्रयत्त हुये हैँ । परन्तु नाटकों को झाधघार बना कर इस प्रकार का प्रयास मही जिया गया। लोक्जीवन के भ्रधित्त समीप होने वे कारण कटको मे गसित्त तथा प्रतिविम्वित तब्य मधिक स्पष्ट, सत्य या ग्राह्म हैं। यद्यपि कुछ नाटकों में कल्पनायें भी हैं, तथापि यथा सत्य को पृथक्‌ किया जा सकता है। प्रत- इस माध्यम से प्राचीन भौगोलियव जानकारी भधिक उपयोगी तथा भावोद्वीपक है । भूगोल बहुत व्यापक विषय है। प्रदेशों की जल-वासु, विभिन्‍त परि- स्थितिया, निवासी, रहत-सहन, खनिज, उद्योग-व्यवस्था, आदि के विवरण इसके भन्तगेंत भा सकते हैँ । इन सभी तथ्यों के वर्णंन के लिये बहुत विस्तार को श्रावश्यकता है । प्रस्तुत भध्ययन सीमित है । इसके भन्तर्गत केवल प्राचीन অনুর नाठको मे व्शित तथा सच्भुतित भौगोलिक नामो की आधुनिक सन्दर्भ भे पहचान वी गई है । सस्त नाटकफो म॒ उल्लिखित भौगोलिक स्थानों की सूची विविध तपा হার্ ই । হুল ₹ঘালী का वर्गीकरण करके प्रस्तुन अध्यमन सात भष्यायोमे विभक्त क्या गया है। प्रथम अध्याय मे ब्रह्माण्ड, पृथिवी श्रौर भारतवर्ष का भौगोलिक विभाजत है 1 दूसरे भ्रध्याय में पर्वतो वनो, सरोवरों श्रौर समुद्रो का परिचय है । तीसरे प्रध्याय मे नदियों तथा नदी-सज्भमों वा वर्णान है । चौथे प्रध्याय में प्राचीन भारतीय जनपदो को लिया गया है । पौँचर्वें भ्रध्याय मे भारतं के जातीय राञ्योश्रौर विदेशी जनपदो के सम्बन्धमे बताया गया है । छठे भ्रध्याय मे नगरो भौर ग्रामो का परिचय है ॥ सातवें प्रध्याय में तोर्थों और ऋषियों के प्राश्तमों का विवरण है। अन्त म दो परिशिष्ट हैं। प्रथम परिशिष्ट में आलोच्य नाठकों का परिचय है। दूसरे परिशिष्ट मे सन्दर्भ ग्रन्थों की सूची है। मानचित्रो द्वारा वनो, पर्वतों नदियों तथा सयमी, जनपदो, नगरी, तीर्थो, भाश्वमो श्रादि की स्थिति स्पष्ट की गई है । भरस्तुत पुस्तक के लेखन तथा प्रकाद्यन मे श्रनेक विद्रानु महानुभावौ का सहयोग प्राप्त हुआ है । इनके प्रति कृतज्ञता होना स्वाभाविक है । श्रादरणीय गुरुवर था गोविन्द तिभुणायत, रीडर एवं विभागाध्यक्ष सस्कृत, के जी के कॉलेज मुरादाबाद ने अति कृपा एव स्नेह के भाव से इस पुस्तक का पुतरीक्षण करके बहुमूल्य सुभाव देने वी कृपा की है| उन्ही के श्रध्यापत एक निर्देशों से सै




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