भारती गद्य धारा | Bharti Gadya Dhara

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Bharti Gadya Dhara by मुंशीराम शर्मा - Munshiram Sharmaराधेश्याम त्रिपाठी - Radheshyam Tripathi

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राधेश्याम त्रिपाठी - Radheshyam Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० होता है और भाषा क्ो परिष्दत एवं प्रवात्पूर्ण वदावा होता है ॥ आवोचतास्मक निबय इसी विभेदद के अन्तर्गत आते हैं। भावात्मक निनन्‍्ध,--दइस प्रकार के तिबस्थों में रस और भावा की व्यजना का प्रमुष स्थात रहता है । भावावेश में आवर लेखक अपने पाहवाद, प्रेम, कोप, घृणा, ह्प, विधाद, विस्मय अथवा इस प्रह्मररे अन्य किसी भात्र वी व्यजना इतनी ठोबता से कहता चाहता है. कि ঘাতক भी उमके प्रवाह में दह जाय। ऐसे विवत्यी में लेखक अवुक्तिया अतिशयोक्ति की भी सहायता लेता रहता है ताकि মান का तीता पक व्यक्त वर गत्रे। गछनाव्य दम प्रगार के! विबत्धों के अधिक निकट रहते हैं । सारादा यह है कि वर्णतास्म निवन्धो का सम्बन्य अधिकता देश से होता है उसमें विषय था वस्तु क्षो न्थिर न्प मे देकर वर्णन कपा जाता है। विवरणात्मक तिवत्य का सम्बस्ध काल से होगा है भौर बस्तु को गतिशील रुप में ইলা जाता है। विवायत्मक विद्स्था से दा की प्रणतता होती है तो आावात्यश तिवत्यों में भागा बी) एए में बुद्धि-तव की प्रयानता रहती है, तो दूसर में हृदय तय की । --पम्पादकः




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