बौध्दचर्या - विधि | Baudhdcharya Vidhi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ बोद्धचया-विधि
त्रिशरण ग्रहण करना चाहिए। तदुपरानत इस प्रकार अष्टशील लेना
चहिएः--
१. पाणातिपाता वेरमणी सिक्लाप्दं समादियामि ।
२. अदिन्नादाना वेरमणी सिकलापदं समाद्धियामि |
२. अब्रह्यचरिया वेरमणपी सिक्लापदं समादियामि ।
४. मुसावादा वेरमणी सिक्लापदं समादियामि ।
५५. खुरामेस्यमज-पमादट्भाना वेरमणी सिक्लापदं समादि-
याभि।
द. विकाल-मोजना वेरमणी सिकसापदं समादियामि }
७.नश्च-गीत-वादित-विसुक-दस्सन-माला-गंघ-विरेपन-घारण-
मण्डन-विभूसनट्धाना वेरमणी सिक्लापदं समादियामि ।
८. उच्चासरयन-मह्यासयना वेरमणी सिक्लापदं समादियामि ।
अथं---
9. मेँ प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करतः हू !
२. में चोरी से विरत रहने की शिक्षा अहण करता हूँ।
३, में अन्रह्मचये से विरत रहने की शिक्षा रहण करता द ।
४. में झूठ बोलने से विरत रहने की शिक्षा अह्ृण करता हूँ।
७, में सुरा, मेरय, मद्य और नशीली चीजों के सेवन से विरत
रहने की शिक्षा महण करता हूँ ।
६. में विकाल-भोजना से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ ।
१. दिन म १२ व्रजे से लेकर दूरे दिन अष्णोदश के पूर्व ( ५ बजे
प्रातः ) तक के समय को विकार সানা जाता है। उपीशय-तघारी
गृहस्थ को विकाल में भोजन नहीं करना चाहिए ।
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