बौध्दचर्या - विधि | Baudhdcharya Vidhi

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Baudhdcharya Vidhi by भिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ बोद्धचया-विधि त्रिशरण ग्रहण करना चाहिए। तदुपरानत इस प्रकार अष्टशील लेना चहिएः-- १. पाणातिपाता वेरमणी सिक्लाप्दं समादियामि । २. अदिन्नादाना वेरमणी सिकलापदं समाद्धियामि | २. अब्रह्यचरिया वेरमणपी सिक्लापदं समादियामि । ४. मुसावादा वेरमणी सिक्लापदं समादियामि । ५५. खुरामेस्यमज-पमादट्भाना वेरमणी सिक्लापदं समादि- याभि। द. विकाल-मोजना वेरमणी सिकसापदं समादियामि } ७.नश्च-गीत-वादित-विसुक-दस्सन-माला-गंघ-विरेपन-घारण- मण्डन-विभूसनट्धाना वेरमणी सिक्लापदं समादियामि । ८. उच्चासरयन-मह्यासयना वेरमणी सिक्लापदं समादियामि । अथं--- 9. मेँ प्राणि-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करतः हू ! २. में चोरी से विरत रहने की शिक्षा अहण करता हूँ। ३, में अन्रह्मचये से विरत रहने की शिक्षा रहण करता द । ४. में झूठ बोलने से विरत रहने की शिक्षा अह्ृण करता हूँ। ७, में सुरा, मेरय, मद्य और नशीली चीजों के सेवन से विरत रहने की शिक्षा महण करता हूँ । ६. में विकाल-भोजना से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हूँ । १. दिन म १२ व्रजे से लेकर दूरे दिन अष्णोदश के पूर्व ( ५ बजे प्रातः ) तक के समय को विकार সানা जाता है। उपीशय-तघारी गृहस्थ को विकाल में भोजन नहीं करना चाहिए ।




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