भाव संग्रह | Bhaav Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) हैँ यह आश्वये है। पहले के उत्तम सहनन से ओ कर्म हजारों वर्षों में नष्ट होते थे वे कम इस समय हीन सहनन के প্রায় एक वे में नष्ठ हो जाते है । , इस उपयु क्त कथन से सिद्ध है. कि आज़ कल के मुनिगण ও ৭ ति हैं वे हिसक जन्‍्तुओं से भरे हुए जंगलों में रहकर धर्म ध्यात करने में अससर्थ हैं বন হা আবি বাতা আর উ पड हे. में, उद्यानों में.म॒दिरों में, मठों, बगीचों आदि से रहते हैं। यह ह्‌ बतेमान शक्ति हीन संहनन के लिये समुचित शास्त्र मांगे है। जो लोग वर्तमान सुनियों पर नाता भाक्षेप करते हैं उन्हें इन লহান্‌ पूर्वांचायों के शास्त्र विधानों से अपना समाधान कर वतेमान मुनियों में उसी प्रकार श्रद्धाभक्ति से देखना चाहिये जैसी कि चतुर्थ कालवर्ती मुनियों पर रहती हे। शरीर सामथ्ये को छोड़कर রানী যা और भावों को विशुद्धि वर्तमान मुनिर्यों में भी प्राच्य काल के समान ही रहती है । इन दिगम्बर बीतराग महर्षि आचाये देवसेन गणी का स क्षिप्त परिचय भाई नाधूराम जी प्रेमी के द्वारा लिखा हमा माणिकचन्द प्रन्थमाला के मुद्रित अन्थ नयचक्र स॑प्रह के प्रार्थन का उद्धरण देते हुए-हमने लिखा है। সানা देवसेन की रचना में महल आचाये देवसेन ने अपने चनाए हुए प्रन्थो मे द्रव्य गुण पर्यायों का वहुत ही गंभीर विवेचन किया है । यं के गह्न ए सूक्ष्म विवेचन में जिन अपेक्षा बाढ़ों का निद्शेन किया है उनसे उतकी अगाघ विद्वत्ता का परिचय सहज सिल जाता है। गुणस्थाने




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