साँचा लघु उपन्यास | Sancha Laghu Upanyas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : साँचा लघु उपन्यास  - Sancha Laghu Upanyas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रांगेय राघव - Rangeya Raghav

Add Infomation AboutRangeya Raghav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कातता मी हूँ। में समझता हूँ चार वए्टा चिल्लाकर लेक्चर देने की अपेक्षा यह अधिक श्रच्छा उद्योग है । और अब तो गांधी जी ने रोक लगा दी हे-जो काते सो पहने | जो पहने सो काते !? कादर डिक्सन ने मनोहर से पूछा- क्या आपने गाँधी जी को कभी देखा है मनोहर ने कहा-नहीं। मैंने उन्हें देखा नहीं | पर वे हमारे राष्ट्र के जीवन में रोम-रोम में व्याये हुए हैं । वे उससे अलग नहीं किये जा सकते । उन्होंने हमारे यहां के किसान को, जो झुका हुआ, दवा हुआ ओर जमीन से मिला हुआ था रीढ़ की हड्डी, तनकर खड़े होने का मेरुदंड , एक संकल्प का मंत्र दिया |, लिजा ने कहा-मैंने सुना है, गांवी जी स्टेशन पर से गुजरंगे | आप चलोगे.मेरे साथ ? मनोहर ने कहा-र य्यर्‌ रात को बहुत देर से स्टेशन से गुजरदी है। असल में आपको तो कांग्रेस का अधिवेशन देखना चाहिये। इस तरह ट्रेन से गुजरते हुए उन्हें दो मिनथ के लिए देखने में क्या হাই? फादर डिक्सन ने कद्दा-अगली कांग्रेस में हम भी चलेंगे | मनोहर ने सुझाव दिया कि अगली कांग्रेस पर भीलों का एः पुरा सांस्क्ृति कार्य-क्रम बनाकर फिर चला जाय | कांग्रोंस अधिवेशन वे साथ कुछ काम भी हो जायगा। यह बायदा कर मनोदर घर लोगा कि देखा मित्र शरण का तार आकर पड़ा ह-अगले हफ्ते इन्दौर आरा जाओ | नौकरी देंगे |? [ २०




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now