साहित्य चिंतन | Sahitya Chintan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
191
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय - Lakshmikant Varshney
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० साहित्य-चितन
राजत्व-काल में कम से कम शासक ता फ़ारसी समझते थे। इंस्ट इंडिया
कंपनी के राजत्व-काल में उसे न तो शासक सममते थे ओर न शासित ।
इस से शासनप्रणाली में घूसखोरी जैसी तरह-तरह की बुराइयां पेदा होने की
संभावना थीं और हुईं भी। वेसे भी अदालतों में सब काम पहले हिंदुस्तानी
में हाता था, उस के बाद वह फ़ारसी भाषा में लिखा जाता था। इन सब
कारणों से सन् १८३४ में फ़ारसी की जगह लोकभापाओं को दी गई
अस्तु, देश की शिक्षा और जनता की भलाई का सर्वोत्तम साधन
लोकभापाएं ही हो सकती थीं । अंगरेजी संस्कृत और अरबी-फ़ारसी के
विपक्ष की सब बातें लोकभायाओं के पक्ष में थीं । लोगों के विरोध करने
पर भी लोकभाषाओं का पलड़ा ही भारी रहा । इन भापाओं के
पक्त-समथकों का कहना था कि अंगरेज़ों को भारतवासियों द्वारा मान
ओर आदर पाने का सर्वोत्तम तरीक़ा उन की भाषा सीखना है। अदालतों
और दफ़्तरों में लोकभापाओं के हा जाने से अंगरेज़ी और फ्ारसी से
अनभिज्ञ लाखों आदमियों को नौकरियां भी मिल सकती थीं। उस समय
एक-दूसरे की भापा न समझ सकने के कारण होने वाले अन्याय की भी
इ गंजायश न रह सकती थी। इस के अतिरिक्त देश के करोड़ों लोगों का
थोड से लोगों की सहूलियत कं लिए एक विदेशी भापा या मृत भाषाओं
के सीखने पर बाध्य करना बिल्कुल अव्यावहारिक सिद्ध होता । इन सब
बातों को साचकर कंपनी ने लोकभापाओं की आर ध्यान दिया ।
संक्षेप में कंपनी-सरकार की भापा-नीति का उद्ख इस प्रकार किया
जा सकता है कि वह अंगरेज़ी को राजभापा बनाना चाहती थी । और
धीरे-धीरे वह इस ओर बढ़ भी रही थी । परंतु द्िी-द्रवार के नाते उसे
फ्रारसी को भी स्थान देना पड़ा । देश में फ़ारसी भापा और साहित्य का
ज्ञान थाड़ा-बहुत प्रचलित था | इस लिए अपनी भाषा-नीति में कंपनी को
फ़ारसी की व्यवस्था करने में कोई अड़चन पेदा न हुई | मार्बिबस वेलेजली
हिंदुस्तानी के कट्टर पक्षपाती थे | लेकिन दफ़्तरों की भाषा उन्हों ने भी
फ़ारसी रहने दी, यद्यपि फ़ारसी पूरी तौर से न सममी जा सकने के
कारण हिंदुस्तानी का प्रयोग भी होता था। फ़ारसी भाषा का विरोध बढ़
जाने पर अंत में सन् १८३७ में उस का स्थान लोकभाषाओं को दिया गया |
देशी भाषाओं में जिस भाषा से इस लेख का संबंध है वह हिंदुस्तानी है ।
! फोट विलियम, ४ सितंबर १८३७--१८३७ का ऐक्ट २९
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