जय जयवन्ती | Jayjaywanti

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Jayjaywanti by रमेश वर्मा - Ramesh Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्जय॒जयवन्तीः के लेखन श्रौर प्रकाशन के बीच साढ़े चार लम्बे वर्षों का श्रन्तराल--मैं समभता हूँ; श्रत्यन्त शुभ-है। इस अवधि ने मुझे दृष्टि दी, परिप्रेक्ष्य दिया, जो वैसे संभव न था। उपन्यास की पांडुलिपि का पुनः आकलन हुआ, भावावेशजनित उपन्यास के अनेक अंश इस अल्प अ्रवधि की कसोी पर खरे नहीं उतरे और स्वयमेव छुंट गए. | इस प्रकार जिस रूप में कृति आपके सम्मुख पहुँच रही है, उससे मुक्ते पूणं संतोष.है) `, कथा उपन्यास का अनिवार्य श्रमः है 'श्ौर सहृदय पाठक का अधिकार | जयजयवन्तीः में कुनूहल-विवर्धिनी कथा है, परन्तु सहज मानवीय संवेदनों को उभासने श्रौर राग-विराग से तादात्य स्थापित करने की क्षमता भी इसमें




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