भवभूति प्रणीत महावीरचरित का आलोचनात्मक अध्ययन | A Critical Study Of Mahavircharitam Of Bhavabhuti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अध्याय ४ कल्हणः तथा राजशेखरः ने भवभूति का ही नाम निर्दिष्ट किया है। किन्तु कविकृतियो की अन्तरग समीक्षा से उनकी शिव के प्रति अनन्य भक्ति प्रकट होती है। मालतीमाधवम्‌ के नान्दी श्लोक मे कवि ने भगवान्‌ शिव की स्तुति की है - चूडापीडकपालसड्‌ कुलगलन्मन्दाकिनीवारयो विद्युत ५<,< लोप्यष््विदिष्डःसाविमिश्रत्विष | पान्तु त्वामकठोरकेतकशिखासन्दिग्धमुग्धेन्दवो भूतेशस्य भुजगवल्लिवलयस्रडनद्धजूटा जटा । | भवभूति के तीनो नाटको का अभिनयस्थल कालप्रियानाथ भी उनकी शिवभक्ति का प्रकाशक हे । इसी प्रकार श्रीकण्ठपदलाञ्छन ' पद भी उनकी शिवभक्त का अभिव्यञ्जक है। श्रीकण्ठ भगवान्‌ -शिव' का अपर नाम है| कवि का नाम भवभूति हे। ९) उपनाम भवमूति ने अपने नाटको मे वश-परिचय देते समय अपने कुल का उपनाम उदुम्बर निर्दिष्ट किया है।* प्रो मिराशी के अनुसार डा० भण्डारकर, त्रिपुरारि तथा वीरराघव ने उदुम्बर पद का उल्लेख किया है, किन्तु जगद्धर ने 'उम्बरनामान * पद प्रयुक्त कर भ्रामक स्थिति उत्पन्न की हे । प्रो मिराशी के मत मे उदुम्बर (गूलर) एक वृक्ष विशेष है, यह भवमूति का उपनाम नहीं हो सकता हे। जगद्धर ने शकानिराकरणार्थ डम्बरनामान पाठ कल्पित किया होगा। मिराशी के अनुसार महाराष्ट्र मे वृक्षविशेष के नामपूर्वक अनेक ग्राम विद्यमान रहै, यथा- अम्बेर्गोव, चिन्कोली, पलसर्गोव आदि | यवतमाल जिले मे पेनगगा के उत्तरी तटवर्ती 'उमरखेद' नामक ग्राम मे भवभूति के परिवार की कतिपय परम्पराये विद्यमान है, सम्भवत यह कवि का मूल स्थान है| राजतरगिणी ४८१४४ बालरामायण १८१६ मालतीमाधवम्‌ १८१ उग्र कपर्दी श्रीकण्ठ शितिकण्ठ कपालमृत्‌ | -अमरकोष १८१३० उदुम्बरनामानो ब्रह्मवादिन प्रतिवसन्ति। ->८'१८०,्म्‌ १.८४-५ एव मालतीमाधवम्‌ १८४१५ / / खजं श19४9)भ५पाी, २ 53-4 1010, 2 55 5 ০ > ०6 < == =




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