भारतीय इतिहास का सर्वेक्षण | Bhaaratiiy Itihaas Kaa Savaiqs-and-a

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ भारत की रचना रत के भूगोल, उसकी प्राकृतिक बनावट, उसके पहाड़ों और उसकी नदियों का उसके इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उसके उत्तर में अलंघ्य हिमालय की दीवार खड़ी है; और उसके दोनों पाश्वों पर पर्वेतराज की अपेक्षा कम ऊंची पवेतश्रेणियां हैं जिनके कारण वह व्यवह्दरतः एशिया महाद्वीप से अलग-थलग होगया है। नीचे, भास्तीय प्रायद्रीप के तीन ओर हिंदमहासागर हिलारे माररहा है। यही कारण है कि समुद्र इतिहास के प्राचीन काल ही से इस देश की समृद्धि का एक प्रमुख लोत बन गया। सारांश यह, महासागर के जल ने भारत को एक ओर अफरीका महाद्वीप से और दूसरी ओर मलाया तथा हिंदनीशिया-द्वीपसमूह से अलग कर दिया; और उत्तर, पूरत्र तथा पच्छिम में पर्वतमाला ने अड़कर उसके सीमांतों को पड़ोसी देशों की भूमि से विलग कर दिया। इस प्रकार भारत अपने विकास के क्षेत्र में, इतिहास के आरंभ ही से, अन्य देशों के संसर्ग से बहुत कुछ दूर जा पड़ा और उसे अपने जीवन ओर उन्नति के पथ पर अकेले ही आगे बदना पड़ा। यदि कोई क्षेत्र इस प्रकार एक परकोटे में घिरकर दूसरे देशों से अलग जापड़ता है तो उसमें कुछ विशेष विलक्षणताएं पैदा हो जाती हैं, जो एक सभ्यता की दूसरी से भिन्नता प्रकट करती हैं। यहां जिस क्षेत्र के अकेले पड़जाने का उल्लेख कियागया है वह एक विस्तृत भूखंड था जिसमें सदा ही विभिन्न जातीय तत्व, विविध जलवायु, भांति-भांति की मिट्टी ओर नानाप्रकार की प्राकृतिक अवस्थाएं पायीजाती रहीं। इन कारणों से, इस विशाल प्रदेश की उन्नति का अजल प्रवाह कभी नहीं रुका, प्रत्युत यह एक महाद्वीप की भांति उन गतिशील और प्रतिक्रियात्मक शक्तियों का अखाड़ा बना रहा जो सभ्यता के विकास का मार्ग प्रशस्त करती हैं। भारत म॑ प्रत्येक प्रकार की जलवायु मिलती है : उधर राजस्थान के मरुस्थल पर सूयं अभि बरसाता है ओर इधर हिमालय के शिखर धवल हिम से आच्छादित रहते हैं। दक्षिण का पठार सूखा है जब्रकि बंगाल और मलाबार में आद्र और उष्ण जलवायु से परिसेबित शस्यश्यामल भूमि केसी नयनामिराम लगती है। भारत में एक महाद्वीप के सभी लक्षण पाये- जाते हैं जो उसके इतिहास का आवश्यक अंग बनगये हें। भारत के भूगोल में सबसे धिक उ्टेखनीय वस्तु हिमालय पर्वत है। एक अंग्रेज लेखक ने इस दर्शनीय गिरिराज का वर्णन करते हुए लिखा हैः “यह धरती का सबसे बड़ा पर्वत है। आद्यकाल में प्रथ्वी के गभ में भीषण विस्फोय होने से प्रचुर लावा उछलकर आकाश की ओर चलागया था जो फिर जमकर अचल पवत बन गया। दूसरे शब्दों में, यह पिघले हुए १




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