केरल सिंह | Keral Singh

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Keral Singh by क. म. पानीक्कर - K. M. Panikkarश्री सीताचरण दीक्षित - Shree Seetacharan Dixit

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श्री सीताचरण दीक्षित - Shree Seetacharan Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय उन दिनों डाकुओों, कंपनीवालों+ और राज्य-भ्रष्ट राजाशोंके उपद्रवों- के कारण कोट्टयंसे पानूर जानेवाला रास्ता बहुत कम चलत्ता था, यदि भनितांत अनिवार्य ही हो जाता तो भी बड़े-बड़े लोग सशस्त्र अनुचरोंके बिना उस मार्गसे नहीं निकलते थे. मार्गके दोनों पाश्वोपर फंली हुई भूमि स्वामियोकी लापरवाहीके कारण चोर-डाकुश्नोंका वास-स्थान बन गई थी. कम्पनीवालीं और कोट्टयंके राजाके बीच आये दिनके संघर्षोके कारण यह प्रदेश निवासके योग्य ही नहीं रह गया था. हमारी' कहानी जिस दिलसे प्रारंभ होती है उस दित तीसरे पहर एक अ्रनागत-इमश्रु युवा लगभग अठारह वर्षकी युवतीके साथ उस मार्ग- से चला जा रहा था. दोनों इतने अधिक श्रान्त थे कि एक पग भी आगे बढ़ना कठिन हो रहा था, युवाकी कमरमें बंधी कटार और हाथकी तल- वार साफ बता रही थी कि वह नायर है. उसका डील-डौल उमरके हिसाबसे कहीं अधिक विकसित था, सत्रह वर्षका वह युवक श्रागे-पीच्े देखता हुआ सावधान होकर चल रहा था और पत्ते हिलनेकी आवाजसे भी चौकन्ना हो उठता था. ০০৫৯ সাপ #स्ट इण्डिया कम्पनी, फिरलीय क्षत्रिय, जो बिना कटार या तलवारके घरसे बाहर नहीं निकलते थे और थे वीरतके लिए प्रसिद्ध.




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