गांधी - विचार - दोहन | Gandhi - Vichar - Dohan

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Book Image : गांधी - विचार - दोहन  - Gandhi - Vichar - Dohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन हस छोटी-सी पुस्तक की उत्पत्ति का कारण है विले पाले का गांधी- विद्यालय । इस विद्यालय में देहात मं जाकर लोक-सेवा करने की इच्छा रखनेवाले नवयुवकों की शिक्षा के लिए एक वर्ग रखा गया था, जिसमें ज्यादातर महाराष्टीय विद्यार्थी थे। गांधीजी के विचार श्रौर लेख गुजरात को जितने परिचित है, उतने महाराष्ट को नहीं हैँ । इसलिए इस विद्यालय के पाठ्यक्रम में गांधीजी के सिद्धांत और विचारों का परिचय' भी एक विषय था । यह विषय मुझे सौंपा गया था और उसके सिलसिले में जो तैयारी करनी पड़ी थी, उसीमें से इस पुस्तक का जन्म हुआ | उसके बाद इस पुस्तक की योजना के विषय में काकासाहब से चर्चा की और यह उनको पसंद झ्रागई। इस चर्चा में यह भी तय हुआ कि जैसे ही इसके श्रध्याय एक-एक करके लिखे जायं, वसे ही वे क्रमशः गांधीजी के ` पास भेज दिये जायं तथा वहु उनको जांचकर भ्रौर सुधारकर प्रमाणपत्र दे, ताकि गांधीजी की समूची विचारप्रणाली उपस्थित करनेवाली एक पुस्तक तंयार हो जाय । गांधीजी ने यह्‌ स्वीकार भी किया; परंतु देहा में और विलायत मं कामके बोभके कारण यह पूरी पुस्तक देखने के लिए समय नहीं मिल पाया । इसके उपरांत ता० ४ जनवरी, १६३२ को वहु पकड़ गये । श्रत: पहला संस्करण उनके संशोधनो के बगेर ही छपवाना पडा था । परंतु भ्रब तो इस सारी पुस्तक को गांधीजी ने ध्यान से पढ़कर उसमें संशोधन किया है; यह्‌ प्रकट करते हुए संतोष श्रौर भ्रानंद होता है । उनके किये हुए सारे सुधार पुस्तक मे समाविष्ट कर लिये गये हैँ । परंतु उनके उपरांत स्वयं मैंने तथा मेरे साथियों ने पुस्तक को फिर से गौर से पढ़ा है। भाषा भ्रौर रचना में कतिपय सुधार करके कुछ नये ग्रध्याय लिखे हैं, श्रथवा कुछ एक पुराने




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