उपनिषद घोषणापत्र - इशावास्योपनिषद | Upnishad Ghoshanapatra -Ishavasyopnishad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६
हैं । एक, मानव मात्र को (सब चराचर को भी) ईइ्वर-सा मानो, श्र्थात्
उतनी मान, मर्यादा करो और दूसरे, उसके जीवत-निर्वाह का प्रबन्ध करो ।
अर्थात् मानव सम्मान-समानता और आथिक समानता का अधिकारी
है। विना सम्मान के खाने की बात करना मानवता का श्रपमान करना है।
दूसरे मंत्र में मानव के लिए सदा कार्यरत रहने का श्रादेश है। यहु उसकः
कतेव्य है । पहले खाना, बाद काम, भ्र्थात् पहले भ्रधिकार बाद में कर्तव्य ।
काम के लायक रहे या बने तभी वह काम करे । बिना काम किये खाने की
सामग्री कैसे पैदा होगी ? खाने और काम में चोली-दामत का साथ है। मुर्गी
पहले कि अंडा पहले, इस बात को ईश्वर पर छोडिए । |
मानव चंगा रहें तो काम ढंग का बने। काम में ढंग लाने के लिए ही श्रागे
चलकर मंत्र ६९-१०-११ में मानव का दूसरा अधिकार माना गया है विद्या-
प्रप्ति, शिक्षा-दीक्षा । जिस प्रकार भोजन में छाजन और रहन-सहन सम्मिलित
है उसी प्रकार शिक्षा में प्रोढ़शिक्षा, बालशिक्षा, लिखना-पढ़ना, हुनर-
कारीगरी सब कुछ शामिल है। यहां मी कायं कुशलता का अधिकार पहले
नम्बर पर है। मानव को निपुण बनने काश्रवसरन देकर निकम्भा बनाये
रखने का किसी समाज या सरकार को अधिकार नहीं है। मानव को निपण
न बनावे तो समाज श्रौर सरकार दोषी श्रौर तेन-मन से उत्पादन न बढ़ावे
तो व्यक्तिं दोषी ।
व्यवितं उत्पादन करेगा, परन्तु उस उत्पादन का स्वामी समाज है, व्यक्ति
नहीं । व्यक्ति उतना ही पाने का अधिकारी है जितने मे उसका मली-मांति
निर्वाह हो जाय । उत्पादन में ज्ञान विज्ञान, धन सत्ता भी सम्मिलित हैं। इन
पर भी सर्वोच्च स्वामित्व समाज का है, व्यक्ति का नहीं ।
इन सब बातों का निर्णय कौन करे, व्यक्ति अथवा समाज ? इसका
उत्तर मंत्र ६, ७ में उपलब्ध है। समाज में सभी व्यक्ति शामिल हैं। गुट,
दल का सवाल नहीं है । समर्थक और विरोधी का प्रश्न नहीं है। ते किसी
समर्थन का मोह, न किसी विरोध का शोक । “एकत्वम अ्रनुपश्यत:” सब को
समान जानों शोर अल्पमत को भुलाकर सर्वेसम्मति का सहारा लो ।
उपनिषद की व्यवस्था मे व्यष्टि रूपेण एवम् समष्टि रूपेण क्तेंव्य तथा
अधिकारों की ऐसी जकड़बंदी है कि “सहयोग” समाज का मूलमंत्र बन जाता
है । यदि कभी संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हौ जाय तो वह संघर्ष भी सहयोगमय
संघर्ष होगा । संघर्ष 'का उहेश्य संहार नहीं, वरन सम्मानपूर्ण समभझोता है।
इसका ज्वलंत उदाहरण हमारे सामने महात्मा गांधी का आंदोलन «है।
` राष्ट्रपिता के नेतृत्व मे हेम भारतीयों को शिक्षा दीक्षा पाने का सौभाग्य प्राप्त
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