वृद्धावस्था में सुख-शांति से कैसे जीयें | Vridhavastha Me Sukh Santi Se Kaise Jiye

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Vridhavastha Me Sukh Santi Se Kaise Jiye by कृष्ण कुमार गर्ग - Krishna Kumar Garg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 वृद्धावस्था में सुख-शांति ते कैसे जीए वाले कार्यों को सहन कर जाते हैं, लेकिन वृद्धावस्था में हमारी इन्द्रियाँ तथा शरीर के भीतरी अंग काम करते-करते दुर्बल हो जाते हैं। उनमें न तो सहनशीलता रहती है और न प्रतिरोधक शक्ति । कैसी आश्चर्य की बात है कि यह जानते हुए भी कि वृद्धावस्था का आगमन प्रारम्भ हो गया है हम अपने खाने-पीने तथा भोग-विलास एवं शौक-मौज में कोई कमी नहीं लाना चाहते। अपने साथियों को हम देखते हैं कि अपनी आदतों के कारण वे बीमार हैं लेकिन उनसे हम कोई सबक नहीं लेते। हम अपने उसी पुराने रास्ते पर चलते रहते हैं। सरकारी अथवा अर्ध-सरकारी नौकर तो एक निश्चित आयु होते ही रियायर कर दिए जाते हैं। अन्य व्यक्तिगत संस्थाओं में जब तक आप काम करने के योग्य होते हैं काम करते रहते हैं फिर रिटायर हो जाते हे । इसका अर्थ है कि आपकी वृद्धावस्था प्रारम्भ हो गई है। जो लोग स्वतन्त्रता से काम करते हैं जिनका अपना निजी काम होता है, वे भी धीरे-धीरे अपने शरीर तथा मस्तिष्क में कमजोरी अनुभव करने लगते हैं। जैसे पहले की भाँति लम्बे समय तक लगातार काम न कर पाना, बातों को भूल जाना अथवा जल्दी थक जाना। यदि जिस तरह से हम जी रहे थे उसी तरह चलते रहेंगे, अपनी दिनचर्या मे परिवर्तन नहीं करेंगे तो निश्चित रूप से कोई-न-कोई बीमारी मोल ले लेगे। अनेकों व्यक्ति ऐसे हैं जो प्रातः भारी नाश्ता करने के पश्चात काम पर चले जाते है। दोपहर को या तो उनका भोजन वहीं आ जाता है या फिर प्रातः ही वे उसे लेकर आते हैं और जैसा भी ठंडा-गरम होता है खा लेते हैं। कुछ लोग बाहर ही कैन्टीन में या बाजार में से कुछ लेकर खा लेते हैं। रात्रि में जब वे वापिस आते है तो खाना खाया और सो गए। यदि इस तरह इस चौथेपन में भी जीने की कोशिश करेगे तो निश्चित बीमार होंगे। कुछ व्यक्ति रिययर होने के पश्चात खाली बैठे-बैठे ऊब जाते हैं। कहाँ तो दिन भर कार्यालय की गहमायरहमी और मित्रों तथा साथियों के हँसी-मजाक और कहाँ सारे दिन का एकाकीपन्‌ । बहुतों कौ मैने देखा कि उन्होने कोई मया काम प्रारम्भ कर दिया ¡ जैसे दुकान ही खोलकर बैठ गए अथवा किसी वस्तु को बनाने का कारखाना लमा लिया। सरि दिन उसी मे व्यस्त रहने लगे। कुछ दिन तक तो ठीक चलता रहा फिर सोचने लगे कि कहाँ फैंस गया। न खाने-पीने का समय है और न कहीं आने-जाने या परिवार में मिल बैठने का | एक इन्जीनियर साहब मेरे पास आष! दिल्ली जैसी जगह मेँ नौकरी करने के पश्चात, एक-दूसरे छोटे शहर मे छन्ने ऋतेनाईजर का काम शुरू किया लम्बी-क् जगह लेकर नियमानुसार




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