स्वामी दयानंद के दर्शन का आलोचनात्मक अध्ययन | A Critical Study Of The Philosophy Of Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4]. णवै तमस्त कार्प-कारणात्मकं ¶वि+ठ-पदार्धोौ, णीवँ अगद पर उपना इधन शासन) रखता है जिस पर শী গন্য की ईक्षना नहीं है, णी सदा देद्य वाला ই নত কবর ই | নি] गीतं के कर्मफल की व्यवस्था करने दाता जृण विशिष्ट णीवेतर आत्मा, जिसके बना अन्य कोई जगत की रचना आगेद व्यापार मेँ समर्थ नहीं , ईश्वर है। नगै तपस्त तीष्ट पदार्थ एवं प्रजा में औतप्रोत शवं विश है और णीौ সি (1) টা খাটি शाउवती प्रजा णीव के किए सीष्ट वे पदार्थो कौ पाधातध्यतः एवं यधापुर्ण बनाता है, ईउवर हैं। বন के रण, कर्म स्वभाव तंक्ष्प में निम्न प्रकार ই- इंपवर तीच्चदानन्दस्वरूप, जनिराकार, तर्वशीकक्‍्तमान, न्यायकारी , दयालहु, अ०नन्‍मा, अनन्त, ननीवेकार, अनावीद, अनुपम, तद्धार, स्वैश्वर, तर्वव्यापक, तद॑ज्ञ, तदान्तवीमनी, अगर, अमर, नित्य, पवित्र और सतौष्टिकर्ता ঘল তবাজা है। आर्य त्माण का इतरा नियम | स्वापी दयानन्द ईश्वर करा शी स्वरूप मानते थे वो 3नके तारा শীলীর্দঘ आर्यक्षमाण के हूसरे नियम ते स्पष्ट पता महं जाता है। उनके लए ईश्वर वच्च तत्ता है इसी को वे ब्रह्मम वहते हँ और वही परम ঘ্বজ্স होने से परमात्मा है। ईप्वर के बबना ম্বীড্ত নী তক্নীন, শান, प्रलय एद्ं लर्मफ्ल व्यटस्था असम्भव है। यहां पर स्वामी -यान-न्द की विचारधारा रकराचार्य, তানানত, तल्लभा एतं मध्वे अगद पुर्तततीं दाश्चमैनकौ से सर्वधा गेभन्नदै। यथधाश्वाद ग ईष्वर का क्या स्वरूप होना चावहए इसका पक्षी ऐएएण्दर्बन द्मे दयानन्द के दर्षन में री




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