युग-दीप | Yug - Deep

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Book Image : युग-दीप  - Yug - Deep

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हर मानव, तुमसे हार गया गै-- कैसे प्राण जगां स्मृति के जव अपना बन भार गया में । स्वगे तुम्हारे लिए बनाये, मघु-मासों के हास बुलाये; श्रत चषक भी तुम्हें पिलाये , तब भी तुम न अमर हो पाये व्यर्थ तुम्दारे द्वार गया में । जीवन का व्यापार बताया, मेने आत्म-ज्ञान सिखलाया ; मेने ब्रह्मानद पिलाया , तुम नर, नाश पी रहे--जीवन लेने को बेकार गया में। सावन के घन घिर आते हैं, रो रोकर सब छिप जाते हैं, आकर दिवस लोट जाते हैं , सुनने गया गीत रवि-शशि के व्यर्थ गया, उस पार गया में । अपना ही अपमान किया है, महा-मरण आह्ाान किया है, कवि का स्वगं मसान किया है, डूब रहे तुम, तुम्हें उठाने गया, ड्ब मेंभधार गया मे । मानव तुमसे हार गया मैं--- केसे प्राण जगाऊँ स्मृति कै जब अपना बन मार गया म।




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