युग-दीप | Yug - Deep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हर
मानव, तुमसे हार गया गै--
कैसे प्राण जगां स्मृति के जव अपना बन भार गया में ।
स्वगे तुम्हारे लिए बनाये,
मघु-मासों के हास बुलाये;
श्रत चषक भी तुम्हें पिलाये ,
तब भी तुम न अमर हो पाये व्यर्थ तुम्दारे द्वार गया में ।
जीवन का व्यापार बताया,
मेने आत्म-ज्ञान सिखलाया ;
मेने ब्रह्मानद पिलाया ,
तुम नर, नाश पी रहे--जीवन लेने को बेकार गया में।
सावन के घन घिर आते हैं,
रो रोकर सब छिप जाते हैं,
आकर दिवस लोट जाते हैं ,
सुनने गया गीत रवि-शशि के व्यर्थ गया, उस पार गया में ।
अपना ही अपमान किया है,
महा-मरण आह्ाान किया है,
कवि का स्वगं मसान किया है,
डूब रहे तुम, तुम्हें उठाने गया, ड्ब मेंभधार गया मे ।
मानव तुमसे हार गया मैं---
केसे प्राण जगाऊँ स्मृति कै जब अपना बन मार गया म।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...