भारत नये संविधान तक | Bharat Naye Sambidhan Tak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.55 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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No Information available about श्री मदनमोहन गुप्ता - Shri Madan Mohan Gupta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निरेकुशता का राज्यकॉल कर तथा भारत के शासकीय नियमों से अनभिन्नता के कारण वे. यहां मनमा नों करते थे । स्वयं अंग्रेजों पर तो कोई राजनियम लागू था नहीं पर भारतीयों पर अंग्रेजों के कर नियम लगाये जाते थे । अंग्रेजी कानून के अनुसार ही सहाराजा नन्दुकुमार को नकली पत्र-लेखन ५ 9 पर प्राणद्ड दिया गया था। ज़ेसा ऊपर वर्णन किया जा चुका है भारत में अंग्रेजी व्यापारिक संस्था ही पहले स्थापित हुईं थी । वह सन् १६०० से अपना व्यापार अंग्रेजी बादशाह के आज्ञापत्र 08067 के अनुसार करती रही। पर जब कम्पनी को चास्तव में प्रदेश मिल गया तब उसे ब्रिटिश बादशाह ने द्वारा राज- सत्ता न्याय-सत्ता तथा वैधानिक सत्ता प्रदान करदी श्रौर अपनी मुद्दा चलाने की अनुमति भी दे दी । बहुत समय तक तो वे केवख युक्न में ही लगे रहे और कोई न्याय-व्यवस्था स्थापित न कर सके पर बाद में उन्होंने गगगाने नियम बना कर घन बटोरना आरम्भ कर दिया । बहुत समय तक कम्पनी का श्रबन्ध तीनों अघीनस्थ प्रांतों--बस्बई ब गाल एवं मद्ास में भिन्न भिन्न परिषदों द्वारा होता था जिनमें १२ से १६ तक अंग्रेज सदस्य होते थे । परिपदों के प्रधान लंदन स्थित कम्पनी के संचालक मंडल के प्रति संयुक्त रूप से उत्तरदायी थे। ३. संसद का अंकुश उयों ज्यों कम्पनीकी शक्ति बढ़ती गई स्यों त्यों इंगलिस्तान की सरकार का ध्यान कम्पनी की ओर अधिक आकर्षित हुआ और वट अपना ग्रभुत्व बढ़ाने की चेष्टा करने लगी जिससे कि भारत में अंग्रेजी संसद की सर्वोच्च सत्ता स्थापित हो सके । १७७३ ह० में एक महत्वपूणो नियमितकरण अधिनियम 3000बनाया गया जिससे कम्पनी के आधीन सारे राज्य के लिये एक शासन- का झायोजन किया गया। इसके अनुसार ब गाल भारत के शासनसूत्र का केन्द्र बना दिया गया । वहां एक गवनर जनरल रहता था जो चार परामश- दाताओं की सहायता से ब गाल का सीधा शासन करता था और मद्रास तथा बम्बई के गवनरों राज्यपालों एवं प रिघदों पर नियन्त्रण रखता था । अधिनियम द्वारा गवनर जनरल को नियम-उपनियम बनाने का एवं उन्हें लागू करने का अधिकार दिया गया । क्योंकि गवनर जनरल एवं प्रांतीय राज्यपालों की परिषदों में केवल अंग्रेज ही होते थे अतः सारी राज्य-व्यवस्था विदेशियों के हाथ में ही थी और भारतीय न उनकी भाषा से भिज्ञ थे और न उन्हें राज्य काज में कोई रुचि ही थी।
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