हिन्दी - जैन - साहित्य - परिशीलन भाग - 2 | Hindi - Jain - Sahitya - Parisheelan Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आठवाँ अध्याय
वर्तेमान काव्यधारा और उसकी विभिन्न प्रवृत्तियाँ
हिन्दी जैन साहित्यकी पीयूषधारा कल-कल निनाद करती हुई अपनी
शीतलूतासे जन-मनके सतापको आज भी दूर कर रही है। इस बीसवी
शताब्दीमं भी जैन साहित्यनिर्माता पुराने कथानकोकों लेकर ही आधु-
निक शैली और आधुनिक भाषामे ही सजन कर रे दै । भक्ति, लाग,
वीरनीति, श्रगार आदिः विषयोपर अनेक छेखकरोकी ठेखनी अविशम
रूपसे चल रही है। देश, काछ और वाताबरणका प्रमाव इस साहित्यपर,
भी पड़ा है । अतः पुरातन उपादानोंमे थोड़ा परिवर्तन कर नवीन काव्य-
भवनोका निर्माण किया जा रहा है।
महाकान्योमे वर्धमान इस युगका श्रेष्ठकाव्य है। इसके स्चमिता
स्वी कवि अनूप शर्मा एम, ए. है । इस महाकाव्यकी शरी संस्कृत
बर्दमाव काव्योके अनुरूप है। संस्कृतनिष्ठ हिन्दीमे वंशस्थ,
द्ुतविछमम्बित और माढिनी इत्तोंमे यह रचा गया है।
इसमे नख-शिखवर्णन, प्रभात, संध्या, प्रदोष, रजनी, ऋ, सूरय,
चन्द्र आदिका वर्णन प्राचीन काव्योके अनुसार है|
इस महाकाव्यका कथानक मगवान् महावीरका परम-पावन जीवन
है | कविने स्वेच्छानुसार प्राचीन कथावस्तुमे हेरफेर भी किया है| दो-
चछ र् स्थलोकी कथावस्तुमें जैनधर्मकी अनमिनताके
उस कारण वैदिक-धर्मको छा वैठाया है। भगवानकी
बालक्रीडाके समय परीक्षार्थ आये हुए देवरूपी सर्पका दमन ठीक कृष्णके
कािय-दमन के समान कराया है। सर्पकी मवंकरता तथा उसके कारण
प्रकृति-विक्षुब्धता भी ल्गमग वैसी ही है। कवि कहता है।
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