कालीदास और उसकी काव्य - कला | Kalidas Aur Usaki Kavya - Kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४
पुल्किशी द्वितीय कै राजकवि रवि! कीति ने एक शिलाः कख मे अपनी तुलना
कालिदास तथा भारवि से की किन्तु उसने भी अभरासंगिक होने के कारण वहां
इत कवियों के देश काल आदि के विषय में कुछ नहीं लिखा ।
दण्डी वामन आदि अलंकार शास्त्र के आचार्यों ते अपने ग्रन्थों में कालिदास
की रचनाओं का आश्रय छेते हुए भी कवि के संबन्ध में
७. दण्डी आदि कुछ नही लिखा । वे भी संभवतः यही समझते रहे कि यह
आचार्यों ने कवि तो सभी जानते हैं! अतः इस विषय में कुछ लिखना
के विषय में कुछ पिष्टपेषणमात्र होगा । यहां हमें यह भी स्वीकार करना
प्रकाश नहीं डाला । चाहिए कि भारतीय सहृदय की विशेष रुचि काव्य के
प्रति ही रही काव्यकर्ता के प्रति नही। वह समझता था
कि उसे तो आम चूसने हैं, आमों के वृक्ष नहीं गिनने ।
यह् भी आइचयं का विषय है कि भारतीय लेखकों ने सिकन्दर जसे
जगद्विजताओं का मूँह मोड़ देने बाले वीरौ का, कही
८. अपने महापुरुषों नाम तक नहीं लिया और अशोक, समुद्रगुप्त, चन््रगुप्त
के विषय में भारतीय जंसे महापुरुषों के कार्यों को स1रण रखने के लिए
लेखकों की उपेक्षा ग्रन्य नही लिखे। फिर बेचारे कवि किस गिनतीमे आ
सकते थे। इस उपेक्षा का दुष्परिणाम यह हुआ कि कुछ
काल पश्चात्, जाति के इन महापुरुषों के सम्बन्ध मे प्रामाणिक तथ्यों को
जानने वाले व्यक्तियों का सर्वधा अभाव हो गया और आगे आने वाली
संततियों के लिए, इन उज्बल ज्योतियों पर अन्धकार का पर्दा पड़ गया ।
महाकवि कालिदास के प्रामाणिक जीवन परिचय के अभाव मे जनता कौ
कल्पना शक्ति ने विकृत जनश्रूतियों गौर किवदन्तियों
९ कालिदास के के आधार पर विचित्र कथाओं की सृष्टि करनी प्रारम्भ
कार के सम्बन्ध की । इनमे से किसी कथा के अनसार यदि यह् कवि
में मतभेद ईसा से ५७ वषं पूवं, उज्जयिनी मे किसी मार्वेश,
१. येनाऽयोजि नवेऽम स्थिर मथंविघ्तौ विवेकिना जिन वेश्म ।
सं विजयतां रवि कीति; कविताध्नित कालिदास भारविकीरिः॥।
२. इस दिकालेख का लेख काल--
पञ्चा शत्सु कलौ काले षटसु पचशरतासु च ।
समासु समतीतासु शकानामपि भूभुजाम् ।॥ (५५६ शकाब्द या ६३४
६० प०) ।
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