श्री अरविन्द का सर्वांग दर्शन | Shri Arvind Ka Sharvanga Darshan

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Shri Arvind Ka Sharvanga Darshan by रामनाथ शर्मा - Ramnath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ৮ ) हैं। परिवार तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं के बाहर रह कर व्यक्ति में अनेक गुणों का श्रभाव बना रहता है। आध्यात्मिक विकास में, जैसा कि ईसा ने बतलाया है, दान से समृद्धि, मृत्यु से जीवन झौर आत्मत्याग से आत्म साक्षात्कार मिलता है । आशिक क्षेत्र में भी श्री अरविन्द का संदेश वही सनन्‍्तुलन और सर्वाग दृष्टि- कोण लिये है । जहाँ तक भौतिक वस्तुओं के वितरण का सम्बन्ध है, जहाँ तक मानव की आ्रावश्यकताश्रों और आराम के साधनों का सम्बन्ध है, वहां तक श्री अरविन्द पक्के साम्यवादी हैं। वे पूंजीवाद के घोर विरोधी हैं, और माक्सं के साथ यह मानते हैं कि काल का प्रवाह पूजीवाद को श्रधिक दिन न' टिकने देगा । परन्तु मौत्तिक स्तर से ऊपर उठकर प्राणात्मक श्रौर मानसिक सम्बन्धो में साम्यवाद कोई सुलभाव नहीं उपस्थित करता । उसकाक्षेत्र केवल भौतिक स्तर है। रोटी की समस्या भौतिक स्तर पर अ्रत्यधिक महत्वपूर्ण होने पर भी जीवन की समस्या नहीं है भ्रतः उसको येन केन प्रकारेण नहीं हल किया जा सकता । वर्ग संघर्ष पर आधारित साम्यवादी साधन मानव के आ्राध्यात्मिक विकास में बाधक हैं। साम्यवाद के आ्राध्यात्मिक रूपान्तर की आवश्यकता है । . अ्रत्तर्राष्ट्रीय राजनैतिक क्षेत्र में श्री अरविन्द एक विश्वराज्य के जबदंस्त हामी हैं। यह विश्वराज्य विश्व के समस्त राष्ट्रों का एक संघ होना चाहिये जिसमें सभी की राष्ट्रीय विशेषताओश्रों का अपना स्थान हो। जिस प्रकार श्रादशचं राष्ट्र वही है, जिसमें व्यक्ति की स्वतन्त्रता श्रौर पूर्णता का समाज के विकास और संगठन से सामंजस्थ हो उसी प्रकार श्रन्तर्राष्ट्रीय समाज अथवा राष्ट्र में प्रत्येक राष्ट्र की स्वतन्त्रता और विकास का समस्त मानवता के विकास श्रौर पूर्णता से सामंजस्य होना चाहिये। विश्व शान्ति की समस्या को सुलभाने में श्री भ्ररविन्द की दिव्य दुष्टि कठोर यथाथंवाद पर प्राधारितहै। सेनाभ्रों भें कटौती प्रथवा निःशस्त्रीकरण कोई स्थायी निदान नहीं है। न ही कुछ दृढ़ अन्तर्राष्ट्रीय नियम' ही विश्व में स्थायी शान्ति स्थापित कर सकते हैं। एक स्वेच्छापूर्णो भर सुदृढ़ विश्व-राष्ट्र ही एकमात्र निदान है। यह विश्ब-राष्ट्र, जाति, देश, संस्क्रति शोर ग्राथिक सुविधाओं के श्राधार पर बने भिन्न-भिन्न स्वतंत्र समुदायों का संगठन होगा इसमें कुछ बड़े राष्ट्रों की ठेकेदारी नहीं बल्कि सभी राष्ट्रों को समान श्रधिकार होंगे इस विश्व-राष्ट्‌ की विद्व सरकार की महत्ता स्थायी रखने के लिये उसको एक सबल सैन्य दल रखना होगा। राष्ट्र-राष्ट्र में प्रेम नहीं हो सकता । जब तक मानव स्वभाव परिवर्तित नहीं होता तब तक जीवन का नियंत्रण शक्ति द्वारा ही किया जा सकता है। सेनिक, पुलिस, प्रशासन, विधान, न्याय तथा झाथिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सभी व्यवस्थाश्रों पर भ्रन्तर्राष्ट्रीय सरकार का नियंत्रण होना चाहिये । फरन्तु मानव समाज के विकास में विश्व सरकार की स्थापना कोई अ्रन्तिम




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