षोडशकारण भावना | Shodashankaran Bhawana

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : षोडशकारण भावना  - Shodashankaran Bhawana

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सदासुख कासलीवाल - Sadasukh Kasliwal

Add Infomation AboutSadasukh Kasliwal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १३) पापक उधतं दपि जाय वड्‌ दसि रेमा पिार.-नो यो दोष प्रगट होमी तो অভ घर्मात्मा अर सिनध दी वदी निन्‍्दा दोमी, या जानि दोष अच्छादन करे, श्र अपना गुण दीष वारो प्रशमा का इच्छुक नाही होय है सो यो उपगूहनगुण सम्पक्ल़ों है । इन गुणनित ঘবিন জল दर्णन रिशुद्धितानाम भपना द्वोय है । बडरि जो धर्ममहिव पृस्पकरा पर्णि कदाचित्‌ रग का वेदना करि धरमत चलि जाय থা হাটি ছি খালি जाप तथा उपसग परिषद्निकरि चलि जाप तथा श्रमहा यदाकरि तथा अद्दारपानका निरोधकरि परिणाम धर्म॑ रिषि द्ोजाप तर उपदशररि धर्म ম स्थम्भन परे। भी ज्ञानी ! भो घमके धारक ! तुम सचेत होहू, दे से कायरता घारणऊर धर्म में शिय्रिल मये हो, जो रोगड़ी बेदुमात धरम चिगो हो, कैसे भूलो दो, थो अमावावदनीकर्म आअपना अयसर पाय उदयम भाव गया है भय जो कायर होय दीनताकरि स्दनगरिज्तापादि करते मोमोग तो कमं नाहीं छाड़ेगा | कर्मके दया नाहीं होय है । भौर पीर भोगोगे तो कर्म नाहीं छाड़गा, कोऊ देव दानव मन्त्र तन्त् ओपधादिक तथा स्त्री, पुत्, मित्र, बाधय सेपक सुमठा| उद्यमे भाया क्म दे समर्थं ई नाही, यो हम अच्छी ताद समी হী। श्रम इस बेदना में फायर होय अपना धर्म थर यश अर परलोक इन कैसे बिगाड़ो हो।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now