अध्यात्मकल्पद्रमसार | Adhayatam Kalapdraum Sar

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Adhayatam Kalapdraum Sar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ (३) बन्दन (४) मविक्रमय (५) कामोत्सगे (६) पच्चरखाण थे झाव- श्यक कियाएँ साधु तथा प्रावक दोनों को करनी चाहियें। ये दास तथा मगान्‌ की भतार हुई हैं, इनसे आत्मा निसेल होती है ब पुराने উনি डे लिये इनके सिवान दिव साधना के भीर सी कुछ रुपाव बताये हैं :-तपस्मा झरना, पालमा, मत, घचत, काभा प९ इंकुक रखता, झरीर पर समता सही रखना, पाँच समिति, दीन शपि रख दुद बरताव र्ना, साध्याय मे रहता, मह. कार प्याग, मिक्का-वृत्ति, नवकश्पी विहार करना, मन, बचन, काया छे किसी को पीढ़ा नहीं पहुँचाता, शुद्धाचार सावना साना, भोह रहित रहता | आत्म-मिरीक्षण सी करते रहना भादहिसे कि थे अपनी शक्ति के अलुसार तप, जप तथा अफझे काम करते हैं था नहीं। इस प्रकार आत्मनिरीक्षण से जीब भ्रनाधास अपने पापों से मुक्त हो सकता है| बोडक् अध्याथ:--साम्म सब्रोधिकार पर लिखा गगा है। यहाँ सम्पू् प्रथ्य का सार दिया गया है। समता प्राप्ति का फल बताया है। एष जो पर, सर्व॑ बस्तुओों एर सममाव रखना बाहिये। पौद्गतिक बरतुओों से राग-ह्ैव नहीं करमा, दोषी मी पर कदणशा, गुझी पर कज़स करण से आनन्द मानना, इन गु्यों की प्राप्दि के किये प्रयास करना । थे कविपन साधन सानव सीवन के दई श्म हैं। प्राप्य थोगबाई का प्दुफ्योग करना। ऐसे लीवन को समता का जीवन दहते हैं। समता सब सांसारिक तु ख्ों का अन्त करती है और मसदा सब प्रदार के हु सो की अड है। कवा्ों पर कप ओर विषयों का स्थागर समता प्राप्दि का रपाय है 'कृठकृदा सानभत्ा है! इस नीति-क्षिया का अनुसरझ प्रत्येक सत्युरुष का पुमोद कर्शव्य है। इसी आब वेद पते सुदृदर मी शिवप्रसाद कामरः के प्रति, समाहित सहयोग प्रदान किया है, करता धनिष्ठ खिसने इष पुस्तक के प्रशुषन मे




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