गगनाञ्चल | Gaganaanchal

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Gaganaanchal  by डॉ अमरेंद्र मिश्र - Dr. Amarendra Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय संस्कृति में बोधिवृक्ष 15 वेदिका-वेष्टनी के शिलास्तंभों पर उत्कीर्ण दानलेख । इनमे कौशिकी पुत्र इद्राग्निमित्र की रानी कुमी के 15 लेख हैँ (अयाये कुरूगिये दाने), उसकी चेटिका सिरिमा का लेख है ओर ब्रहममित्र की रानी नागदेवी का लेख है। ये लेख 50 ई. पू. से 50 ई. के बीच के काल के हो सकते है । उस समय की वेदिका-वेष्टनी काफी छोरी थी ओर केवल बोधिवुक्ष ओर वज्रासन को ही घेरती होगी । हमारे देश में बुद्ध मूर्तियां ईसा की प्रथम सदी से बननी शुरू हुई-- सर्वप्रथम गांधार ओर मथुरा मे । कुषाणकाल में मथुरा बोघधर्म ओर मूर्तिकला का एक महान कद्र बना । बुद्धगया से हविष्क के समय की एक बुद्ध मूर्ति, जिस पर लेख हे, ओर उसकी एक स्वर्णमुद्रा मिली है । मूर्तियां स्थापित होने लगीं, तो बुद्धगया में महाबोधि मंदिर का निर्माण ओर विस्तार शुरू होने मे भी ज्यादा देर नहीं थी । मगर यहां हम बुद्धगया के महाबोधि मदिर के इतिहास की चर्चा नहीं करेंगे | फाहियान, युवान-च्वाडः आदि अनेक चीनी यात्री बुद्धगया पहुंचे और उन्होंने बोधिवृक्ष, महाबोधि मंदिर और आसपास के स्मारकों की विशद जानकारी दी । युवान-च्वाङ्‌ के समय का महाबोधि मदिर लगभग आज जैसा ही था। श्रीलंका का महाबोधि से बड़ा गहरा संबंध रहा है । श्रीलंका के शासकों ने बुद्धगया में विहार बनवाए, खून दान दिए । उनके अभिलेख बुद्धगया के इतिहास पर काफी प्रकाश डालते हँ । । जनश्रुति है कि गौड़ शासक शशाक ने बोधिवृक्ष को नष्ट कर दिया था । मगर उसके तुरत बाद पूर्णवर्मा ने बोधि वृक्ष की पुनः स्थापना की ओर मंदिर का पुनरूद्धार किया । युवान-च्वाङ्‌ ने इसी नए मंदिर ओर बोधिवृक्ष को देखा था । उसके बाद कई नार मंदिर का पुनरूद्धार हुआ। इसमें पाल शासकों और बर्मी राजाओं का भी योगदान रहा। मगर तेरहवीं सदी से बुद्ध गया के स्मारक लगभग पूर्णतः उपेक्षित रहे, धीरे-धीरे खंडहर बनते गए। पिछली सदी के उत्तरार्ध में जनरल कनिंघम की देखरेख में महाबोधि की मरम्मत की गई। मरम्मत करते समय पुराना बोधिवृक्ष गिर गया, तो उसी की एक शाखा वहां पुनः रोपित कर दी गई। वही है बुद्धगया का आज का बोधिवृक्ष--बीजानुबीज या शाखानुशाखा से ढाई हजार साल पहले का वही मूल अश्वत्थ वृक्ष जिसके नीचे बैठकर सिद्धार्थ गौतम ने ज्ञान प्राप्त किया था। हम देख चुके हैं कि किस प्रकार संघमित्रा द्वारा महाबोधि की शाखा श्रीलंका में अनुराधपुर ले जाकर वहां रोपित की गई थी। दीपबंस और महावंस जैसे इतिहास-पंथों में अनुराधपुर के उस बोधिवक्ष के नरे मेँ जानकारी मिलती है । बाद में यह जानकारी विस्तृत रूप से देने के उदेश्य से महाबोधिवंस नामक एक ख्तंत्र ग्रंथ ही लिखा गया । श्रीलंका के सभी बौद्ध विहारे मे बोधिवृक्ष है । वस्तुतः बोधिवृक्ष ही भारत ओर श्रीलंका के सांस्कृतिक संबंधों का सबसे बड़ा जीवंत प्रतीक है । कमोबेश रूप में यही बात बर्मा, थाईलैंड, कंबोडिया ओर इंडोनेशिया पर धी लागू होती दै । बारोुडुर के भव्य स्तुप के शिल्यांकन मे बोधिवृक्ष




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