अजात शत्रु | Ajaat Shatru

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Ajaat Shatru by श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथा-प्रसंग वर्णन भी वौद्धों की प्राचीन कथाओं से यहुत मिलता है । विम्वसार की बढ़ी रानो कोशला कोशल-नरेश प्रसेनजित्‌ की यहन थी । वच्स-राष्ट्र की राजधानी कौशांबी थी, जिसका खँँदहर জিনতা আলা ( करुई-सब-डिब्री- जन > मँ यञ्ुना के किनारे कोसम्‌ नाम से प्रसिद्ध है । उदयन, इसी कोशांबी का राजा था। इसने मगधराज थोर अवन्ती-नरेश, दोनों की राजकुमारियों से चिचाह क्रिया था। भारत के सहस्तरस्जनी- धरिप्न 'कथ-सरित्सागर! का.नायक इसी का पुत्र नरवाहनदत्त है । बुहत्कथा ( कथा-सरित्सागर ) के आदि आचाये वररुचि हैं, जो कोशांबी में उत्पन्न हुए थे, और जिन्न मगध मे नन्द का सन्नित्व किया । डद॒यन के समकाछीन अजातशत्नरु के वाद उदयाश्व, नंद्वद्धन और महा-* नन्द नाम के तीन राजा मगध के सिंहासन पर बेंठे । श्रद्धा के गर्भ से उध्पन, महानन्द के पुत्र, महापद्म ने ननन्‍्दु-वंश की नींव डाली । इसके बाद सुमास्य आदि ४ नंदों ने शासन किया ( विष्णु पुराण, ४ अंश ) 1 किसी के मत से महानंद के वाद्‌ नव नन्दोंनेराज्य किया; इसी नव नन्दः ` वाक्य के दौ अर्थं हुए--नव न्द्‌ ( नवीन नन्द्‌ ), तथा महापश्न मौर ` सुमाल्य आदि ९ नन्द्‌ । इनका रज्यि-कार, विष्णुपुराण के अनुसार १०० ` वं । नन्द्‌ के पसे राजां का राज्य-काट भी, पुराणों के भनुसार, ` खगभग १०० चर्ष होता है। हुंढि ने सुद्राराक्चषस के उपोद्धात मे अन्तिम ` नन्द का नाम धननन्द लिखा है । इसके वादं योगानन्द का मन्त्री वर „




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