समयसार प्रवचन भाग - 1 | Samay Saar Pravachan Bhag - 1

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Samay Saar Pravachan Bhag - 1 by रामजी माणेकचंद दोशी - Ramji Manekachand Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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পা १.७ म्रधान सत्पुरुष श्री कानजौ. खामी ने श्रौ समयसारजी के विस्तृत হলি चनात्मक प्रत्रचर्नो के द्वारा जिनागमों का म्मे खोलकर मोक्तमार को झनावृत करके वीतराग दशन का पुतुरुद्धार किया है, मोक्ष के महामंत्र समान समयसारजी की प्रत्येक गाथा को पूणेतया झोधघकर इन संक्षिप्त सून्नोः के विराट अर्थ को प्रवचनरूप से प्रगट किया है। सभी ने जिनका अनुमव किया हो ऐसे घरेलू प्रसंगों के अनेक उदाहरणों द्वारा, अतिशय प्रभाचक्त तथापि सुगम ऐसे अनेक न्यायें द्वारा और अनेक यथोचित्त दृष्टान्त द्वारा कुन्दक्ुन्द भगवान के परमभक्त श्री कानजी खामी ने समः হাজী के अत्यंत अथ-गंभीर सूक्ष्म लिद्धान्तो को अतिशय स्पष्ट और सरल वनाया है। जीव के कैसे साव হই ভঙ্গ আনুন ভা জর परिणमन, तथा- कैसे भाव रहे तत्र नत्रृतत्वों का भूताथे स्वरूप समम में झाया कहलाता है। कैसे-कैसे भाव रहे तब निरावलम्धी पुरुषाथ का आदर, सम्यग्दशन, चारित्र, तप, वीर्यादिक की प्राप्ति हुईं कहलाती हे- आदि विषयों का- मनुष्य के जीवन में- आने, वाले सैकड़ों प्रसग़ों के प्रमाण देकर ऐसा स्पष्टीकरण क्रिया है कि मुमुक्ुओं को उन-उन विषयों का स्पष्ट सूक्ष्म ज्ञान होकर अपूर्वे गेभीर अथ- दृष्टिगोचर हो शौर. वे वेमा में माक्षमाग की कल्पना को छोड़ऋर यथार्थ मोक्षमाग को समककर सम्यकू- पुरुषाथ में लीन होजाये। इसप्रफार श्री सममयपार जी के मोक्षदायक भावों- को अतिशय मधुर, नित्य-नच्रीन; बैविध्यपूण गली द्वारा प्रभावक भाषा में अत्यंत स्पष्टछप से समकाकर जगत का अपार उपकार- किया है| समयघार. मँ भरे इएः श्रनमोल तत-रुनो का मूल्य ज्ञानिओं के हृदय, में छुपा रहा था- उसे- उन्होंने जगत को- बतलाया है। किसी परम मंगलयोग में दिव्यभ्वनि क नवनीनस्वरूय श्री समयतार परमागम की रचना हुईं । इस रचना के पश्चात्‌ एऋहजार वर्ष में जगत _ के महाभाग्योदय से श्री समयसार जी के गहन तत्वो-को विक्रसिंत करने वाली” भगेब्ती आत्मस्यातिं'की रचना: हुई और उप्तके उपरान्त एकहजार वर्ष पश्चात' जगत में पुनः महाप्ृण्योदय से मदबुद्विओं को भी समयसार




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