सर्वोदय अर्थशास्त्र | Sarvoday Arthashastr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वोदय अधशास्त्र की पुकार हर एक का अनुभव है कि बाज़ार भें चीज़ों के दाम गिरते- चदृते रहते दै. खासकर जो चीजे बुनियादी जरूरत की हैं जैसे अनाज, कण्डा वगैरह उनमें यह उत्तार-चढ़ाव बहुत होता है, जिससे मामूली गिरस्थी आदमी को हेरत होती है कि आखिर भाजरा क्‍या है कि एक वक्त, में एक चीज के दाम तो कम हो जाते हैं पर दूमरी के बसे ही बने रहते हैं. फिर, यह समझ में नहीं आता कि अगर किसी वक्त. यह उतार-चढ़ाब आत्ता है, तो क्यो आता है. हम इन सवालो मे नहीं पढ़ेगे और न यहा इनमें पड़ने का कोई मौका ही है. पर इतना जरूर कहेगे कि इस मंहयी, सस्ती का-यह मुसीबत साबित होया वरकत- कारण है हमारा मौजूदा श्र्थशात्र, जिसको हम पूजीवारी, साम्यवादी, साम्राजवादी या फासिस्ट आदि न कहकर स्वार्था अथशा््र कहेगे इसकी बुनियाद में एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें क्‍या सरकारी, क्या गैर-सरकारी, सभी साधन इस तरह लगे हुए हैं कि उनसे चंद आदमियों को फायदा पहुँच जाये और वह मालामाल होते रहे और गरीब गरीब बनते चले जायें इस तरफ जरा-भी ध्यान नहीं है कि वह व्यवस्था किस तरट्‌ कायम की जाये, वैसा आर्थिक सग्रठन कैसे खड़ा किया जाये जिससे हर किसी का, सब का भत्रा हो, सभी उसमें फूले-फले ओर सब की तरक्की हो अपनी-अपनी चिन्ता करने वाले, अपना हित संभालने वाले यह स्वार्थी अथंशासत्र और उसके अलमबरदार आज करीब करीश्र समूची दुनिया पर हावी हैं. यही वजह है कि विज्ञान में आये दिन नई खोजे डोती हें, प्रकृति पर 'विजयः पाने के निन लये साधन निकलते हैं,




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