नव पदाथ एसी 3869 | Nav Padath Ac.3869
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
832
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
भीखण जी - Bhikhan Ji
No Information available about भीखण जी - Bhikhan Ji
श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
No Information available about श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[६].
बन्च-हेतु (गा० २७-२८); उच्च गोत्र और नीच गोत्र कर्म के बन्ध-हेतु (गा० २६
०) ज्ञानावरणीय आदि चार पाप कम (गा० ३१) वेदनीय आदि चार पुण्य कर्मों
की करती निरवद्य है (गा० ३२); मगवती ८.९ का उल्लेख दृष्टन्य (गा० २३)
कल्याणकारी क्म-बन्ध के दस बोल निरवद्य हैं (गा० ३४-३७); नौ पुण्य (गा०
३८); पुण्य के नवों बोल निरवध व जिन-आज्ञा में हैं (गा० २३६); नवों बोल क्या
अपेक्षा रहित टै ? (गा० ४०-४४); समुद्य बोल अपेक्षा रहित नहीं (गा० ४५-
५४); नौ बोलो की समम (गा० ४८-५४); सावद्य करनी से पाप का बन्ध होता है
(गा० ५५-५८); पुण्य और निर्जरा की करनी एक है गा० ५६); पुण्य की ६
प्रकार से उत्पत्ति ४२ प्रकार से भोग (गा० ६०); पुण्य अवाउछनीय मोक्ष ; वाउछ
नीय (गा० ६१-६३), रचना-स्थान और काल (गा० ६४) 1
टिप्पणियाँ
[ १--पुण्य के हेतु गौर पुण्य का भोग पृ २००; २--पुण्य की करनी में
निर्जरा ओर जिन-आज्ञ कौ नियमा प° २०१; ३- साधु के सिवा दूसरों को
अच्नादि देने से तीर्थकर पुण्य प्रकृति का बंध होता है इसत प्रतिपादन की अयी-
क्तिता पृ० २०२; ४-पुण्य-वेध के हेतु गौर उ्तकी प्रक्रिया पृ० २०३-- पुण्य
जुम-योग से उत्पन्न होता है: शुभ योग से निजंरा होती है और पुण्य सहज रूप से
उत्पन्न होता है जहाँ पुण्य होगा वहाँ निजंरा अवध्य होगी : सावद्य करनी से
पुण्य नहीं होता : पृण्य की करनी में जिन आज्ञा है, ५--अशुभ अल्पायुष्य और
शुभ दीर्घायुप्य के बन्ब-हेतु पृ० २०६; ६--अशुभ-शुभ दीर्घायुष्य कमं के बन्ध-हेतु
पृ० २१०; ७--अशुभ-शुभ आयुध्य कम्र का बंध ओर भगवती सूत्र पृ० २११
८- वंदना पे निजरा भौर पुण्य दोनों प° २१९१; ₹- মক্কা উ निर्जरा ओर
पुण्य दोनों प २१२; १०--वेयावृत्य से निजरा ओर पुण्य दोनों प° २१३;
११- तीथकर नाम कमं के নন ० २१३; १२ निरवद्य सुपात्र दान ते
मनुष्य-आयुध्य का बंध पृ० २१६; १३--साता-असाता वेदनीयक्मं के बंब-हेतु
पृ० २२०; १४--ऋर्कश-अकर्कश वेदनीय कम के बंध-हेतु प० २२२; १४--
ल्याणकारी-कल्याणकारी कर्मो के बंघ-हेतु प २२२; १६--साता-असाता वेद
नीय कर्म के बंध-हेतु विषयक अन्य पाठ प्ृ० २२४; १७--नरकायुष्य के बंध-हेतु
पृ० २२४; १८--तियंठचायुष्य के बंब-हेतु २२४४ १६--मनुष्यायुष्य के बन्च-हेत
पृ० २२५; २०--दैवायुष्य के बंध-हेतु पृ० २२६; २१--शुभ-अशुभ নাল হদ ঈ
बंब-हेत १० २२७ २२--उच्च-नीच गोत्र के बंध-हेतु पृ० २२८; २३--ज्ञाना
वरणीय आदि चार पाप कर्मो के बन्ध-हेतु १०२२६; २४-वेदनीय आदि पुण्य
User Reviews
No Reviews | Add Yours...