विजनवती | Vijanavati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) हायावस्थामें उसके आत॑ विलाप, दमयन्तीकी निदारुण-निर्यातन-गाथा, आदिं कर्ण तथा विषाद-रसपूर्ण घटनाओमें जो रस प्राप्त होता है, वह किसी वीररसपूर्ण अथवा भोगविलासमय वर्णनमे नहीं। रामायणकी सारी कथा विषादके भावसे ओतप्रोत है। राम-वनवासकी हृदय-विदारक घटना उस भावके केन्द्रमे स्थित है और सीता- वनवासकी' मर्मघाती घटना इस महाकाव्यकों 111187178 (00०! दे देती है। तुलसीदासकी रामायणर्म काव्योत्कषेकी दृष्टिसे उस स्थानका वर्णन सबसे अधिक सुन्दर है जहाँ पर कविने भरतकी राम-विरह-जनित व्याकुरता, अनुशोचना, रोदन-कन्दनके साथ-साथ उनका विह॒वल प्रेमोन्माद वर्णित करते हुए अन्तमें उस अवस्थामें उसकी परिणति दिखाई है जब भरत वनमें रामके समीप आकर पाहि नाथ कहि पाई गुसाई! भूतल परे कुट की नाई ॥ भरतके इस आतं करन्दन तथा मोहमग्न अवस्थाको भी हमारे धीर, बीर, गम्भीर साहित्यालोचक नपुसकताकी ही निरानी बतार्येगे, प्रर कवि-प्ाण रसिक- जन इसी वर्णनमें काव्यका चरम सौन्दर्य पाते हे। यूरोपके अर्वाचीन साहित्यमे विषादकी रेखा प्रगाढ रूपसे अंकित है। शेक्स- पियर, गेटे (06116), शिकर आदि नाटककारो तथा कवियोकी रचनाबोर्मे विषाद-रस कूट-कूटकर भरा हुआ पाया जाता है। शेक्सपियर के हैमलेट'मे यह्‌ रस पराकाष्ठाको पवा दिया गया है, गेटेके 6 तथा 4051 मे मानव-जीवनकी असफलता, मनूष्य-चरित्रकी दुबेरता, स्वाथंमग्न संसारकी सकी्ण-हृदयता आदि ओर भी कई निराशा-जनक कारणोके अस्तित्वसे जीवनकी व्य्थ॑ताका चित्र प्रतिफलति हमा है। बायरनकी निराशावादिताके कारण 99ए9707187 का मत चल गया है, इटलीमे 16012101, फास 1 .214101116, रूस आदियें 2051० प्रमुखं लेखकोकी रचनाओमें विषाद ही केच्रगत भाव है। आधुनिक यूरोपियन साहित्यमे शायद ही कोई श्रेष्ठ छेखक ऐसा देखनेमे आवे, जिसकी रचना विषादके भावसे संश्लिष्ट न हो। शेलीका जीवन जिस प्रकार संकटाकुल था, उसकी कवितामें भी दु ख़की वैसी ही प्रगाढ छाया पडी है। 18106 89170 जथवा (8|911 01 106121/ की खोजमें वह व्यस्त है, पर भ्ल प्तः की प्रात अणा तथा 8४४६ ०६ 1४17 के प्रगाढ अंधकारमय, स्-संहारक होनेपर भी नव जीवन ओर उज्ज्वलताकी सुचना- प्रददोंक रूपपर वह जी जानरे मुग्ध है। भौर तो क्या, वडस्वथं तथा टेतिसनके




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