भावी नागरिकों से | Bhavi Nagarikon Se

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Bhavi Nagarikon Se by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रत्येक नागरिक से ७ कोई आदमी रोगी होता है, उसकी आमदनी कम हो जाती है, और दवा-दारू श्रादि का खचं बढ जाता है। देससे सभी को श्रसुविधा होती है । इससे यह स्पष्ट है कि स्वस्थ रहने का प्रयत्न करना कितना आवश्यक है । स्वास्थ्य-रक्षा के नियम बहुत जटिल या पेचीदा नहीं हैं | आदमियों को शुद्ध, ताजा और सादा भोजन करना चाहिए; साफ, हृवादार स्थान में रहना चाहिए; कुछ व्यायाम, ओर जितना जरूरत हो विश्राम, करते रहना चाहिए; और मन में अच्छे सात्विक विचार रखने चाहिएँ | कुछ आदमी निधनता के कारण और कुछ श्रादमी श्रालस्यया शौकीनी आदि के कारण इन बातों की ओर यथेष्ट ध्यान नहीं देते । इसका परिणाम यह होता है कि वे बीमार पड़ जाते हैं, उनका सुख नष्ट हो जाता है, तब उन्हें स्वास्थ्य का मुल्य शात होता है। इसलिए यह बहुत ही जरूरी है कि हम कोई बात ऐसी न करें जिससे हमारा स्वास्थ्य बिगड़ने की आ्राशंकां हो | स्वास्थ्य-रक्षा सम्बन्धी कुछ बातें म्युनिसिपेलिटियों या जिला-बोर्डों' अथवा राज्य के करने की होती हैं, पर इन संस्थाओं को भी तो हम या हमारे ही आदमी बनाते हैं। अतः उनके द्वारा भी ठीक व्यवस्था होनी चाहिए | यहाँ विशेष रूप से यह कहना है कि जो बातें प्रत्येक नागरिक के अपने अपने करने की हैं, उनमें से किसी की उपेक्ञा न की जानी चाहिए | हमें अपने शरीर को निरोग, स्वस्थ और यथा-सम्भव दृष्ट -पुष्ट बनाना चाहिए | परन्तु यह न सोचना चाहिए कि ऐसा करने से हमारे सब कतंव्य पूरे हो जायंगे। नहीं, स्वास्थ्य-रक्षा हमारे कई एक कर्तव्यों में से सिफ्रे एक कतंव्य है। यह एक प्रमुख कतंव्य है, श्रोर इसके पालन करने से हमें अपने अन्य कतंव्यों के पालन करने में सुविधा होती है, तो भी यह याद रहना चाहिए कि स्वास्थ्य-रक्ञा एक साधन मात्र है, यह स्वयं ही कोई साध्य या श्रन्तिम लक्ष्य नहीं है | जो श्रादमी दिन भर




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