पार्श्वनाथ चरित्र | Parshvanath Charitra

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Parshvanath Charitra by काशीनाथ जैन - Kashinath Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६. य्‌, # पाश्येनाथ-चरित्र # प्रभायसे प्रकाशित देवतायोंके रे हुए उत्तम सिंदासनपर विराजमान, चमफते हुए खेंचर जिनपर दुल रदे हैं, जिनपर तीन छत्न लगे हैं, सोना-चाँदी और मणियोंसे चमफते हुए यप्र-त्रयसे जो पिमूपित हैं और सके समान प्रफाशमान हो रहे है, ऐसे ओरीपाएपमाथदेयकी में घन्दना फरता हूँ 1 घीणा जौर पुस्तक धारण फणनेयाटी, दैवेन्रसे सेपित, सुर- मुर शौर मनुष्योखि पूजित, संसारसागरं तारनेराटी, तिजय वैनेवारी, दिता दूर फरनेयाली, विघ्रकपौ सन्धकाग्फो दूर फरनेयाली, सुपको देनेयाठो और सव अर्योकी सिद्धि करनेयारी भगवती सरस्वतीको प्रणाम कर और गुखके चरण-कमर्लोफो नमस्फार फर में भगवान्‌ पार्श्यनाथका चरित्र लिखता हैँ। प्रथत जत) खाप योजनम पैट हुए जम्बू दीपके दष्णाद्धं भरतस्षेत्र्मे यार्द्‌ योजन रम्बा, नौ योजन चौड़ा, घडे वटे खुन्दर मफानोसि सुशोभित, दुकानोंकी भेणीसे विराजित भौर नर-रलसि भक्त पोतनपुर नामफा नगर दै} उसो नगस्मे अगविन्द्के समान शोभा-युक्त भरचिन्द नामके राजा राज्य फरते थे। वह बड़ेदी न्‍्यायी श्ज्ञा पाछफ, शत्रुओंको जीतनेमें चतुय, धर्म-निष्ठ, थद्धालु, परोपकारी भौर प्रतापो ये । उनकी पटरानीका नाम धारिणी था, जो यड्ो हो परोपकारिणी, न्यायवती, शीटयती, गुणवती, भर्मंघतो और पुत्रवती थीं। उनके राज्यम प्रजा यदो षु थी। उनके पुरोद्ितका नाम विश्यभूति था। बह पिद्दान, परिडित'




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